मक्के🌽की खेती की पूरी जानकारी | Hybrid Makka ki Kheti | maize farming | Krishi Network
Автор: Krishi Network
Загружено: 2021-08-22
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मक्का एक बेहद ही प्रमुख खाद्य फसल होती है। जो कि मोटे अनाज की श्रेणी में शामिल है। इस फसल में नर भाग सबसे पहले परिपक्व हो जाता है। अगर हम देश में मक्के की बात करें तो यह ज्यादातर पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में ही उगाया जाता है। इसे लगभग हर तरह की सभी मिट्टी में आसानी से उगा लिया जाता है। मक्का एक मात्र ऐसा खाद्य फसल है जो कि जो हमेशा से ही मोटे अनाज की श्रेणी में आता है। आज भारत में मक्के के पैदावार की नई आवक काफी ज्यादा मात्रा में अपना नया स्थान प्राप्त कर रही है। भारत में मुख्य रूप से जिन राज्यों में मक्के की खेती की जाती है उनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, राजस्थान और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में इसकी खेती की जाती है। लेकिन एमपी, छ्त्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात आदि में इसका काफी महत्व है. तो आइए जानते है कि मक्के की फसल के बारे में -
मक्के की उन्नत किस्में
मक्के की बुवाई के लिए दो प्रकार की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती है। एक तो इसमें समान्य प्रजाति होती है जैसे की नवीन स्त्रेता, कचंना, शाक्ति -1 आजाद उत्तम, नव ज्योति, गौरव, प्रगति, आदि सभी संकुल प्रजातियां होती है। दूसरी होती है संकर प्रजातियां जैसे कि गंगा 2, गंगा 11, सरताज, पसा अगेती आदि ऐसी किस्में है जो कि सबसे ज्यादा होती है।
मक्का की खेती के लिए भूमि चयन
मक्के की खेती को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जाता है। इसके लिए दोमट मिट्टी या बुलई मटियार वायु संचार और पानी के निकास की उत्तम व्यवस्था हो या पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होता है। इसीलिए ऐसी जमीन में मक्के की बुवाई कर लें। इसके साथ ही जिस पानी में खारे पानी की समस्या है तो वहां पर मक्के की बिजाई को मेड़ के ऊपर करने की बजाय साइड में करें ताकि नमक से जड़ें प्रभावित न हों। खेत की तैयारी को जून के महीने में शुरू कर देना चाहिए। मक्के की खेती के लिए गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। अगर आपका खेत गर्मियों के मौसम में खाली है तो गर्मियों में इसकी जुताई करना लाभदायक है। खरीफ की फसल के लिए एक तरह से गहरी जुताई 15-20 सेमी मिट्टी को पलटने वाले हल से करना चाहिए। इसका फायदा यह है कि इसके सहारे कीटपतंगे, बीमारियों की रोकथाम को रोकने में सहायता मिलती है। खेत की नमी को बनाए रखने के लिए कम से कम जुताई को करके तुंरत पाटा लगाना चाहिए। जुताई का मुख्य उद्देश्य मिट्टी को भुरभुरी बनाना होता है। अगर संभव हो तो संसाधन प्रबंधन तकनीक को प्रयोग करे।
बुआई और बीज दर
मक्के की बुआई को वर्ष भर कभी भी खरीफ, रबी, जायाद के समय कर सकते है। लेकिन खरीफ ऋतु में बुवाई मानसून पर निर्भर करती। अधिकतर राज्यों में जहां सिंचाई सुविधा हो वहां पर खारीफ में बुआई का उपयुक्त समय मध्य जून से जुलाई तक रहता है। बीज की मात्रा अलग-अलग पसल के हिसाब से की जाती है। जैसे कि बेबीकॉर्न के लिए 10-12, स्वीटकॉर्न 2-5.3, पॉपकॉर्न 4-5 किग्रा एकड़ में डलाना चाहिए। कोशिश करें कि फसल के बीच में बोते समय अंतराल प्रति लाइन 60-75 सामान्य रूप से हो। मक्का के बीज को 3.5-5.0 सेमी गहरे अंदर तक बोना चाहिए। जिससे बीज मिट्टी से अच्छई तरह से ढक जाए तो अकुंरण हो सकें।
मक्का की बुआई विधि
पौंधों की जड़ों को पर्याप्त नमी भी मिलती रही और जल भराव होने वाले नुकसान से बचाने के लिए यह उचित है की फसल मेंडों पर ही बोए। बुवाई को पूर्वी और पश्चिमी भाग के मेंडों पर करनी चाहिए। बीज को उचित दूरी पर ही लगाना चाहिए। बीज बोते समय प्लांटर का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि इसको एक ही बार में बीज और उर्वरक को उचित स्थान पर पहुंचाने में मदद मिलती है। चारे के लिए बुआई सीडड्रिल द्रा करनी चाहिए। मेड़ों पर बुआई करते समय पीछे की ओर चलना चहिए।
निराई और गुड़ाई
खरीफ के मौसम के समय पर खरपतवारों की अधिक समस्या होती है, जो फसल से पोषण, जल एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते है जिसके कारण उपज में 40 से 50 प्रतिशत तक का नुकसान होता है।
कटाई व उपज
जब पेड़ बड़े हो जाए और भुट्टटों के पेड़ों की प्ततियां पीली पड़ने लगे तब ही मक्के की कटाई को करना चाहिए। अच्छा होगा अगर आप भुट्टों के शेलिंग के पहले इसे धूप में सुखाया जाए और दानों में 13-14 पर्तिशत तक की नमी होनी चाहिए। उचित भडारण के वलिए दानों को सुखाने की प्रक्रिया तब तक करनी चाहिए जब तक कि उनमें नमी का अंश 8 से 10 प्रतिशत तक न हो जाए और वायु इन्हें जूट के थैलों में रखना चाहिए।
जल प्रबंधन
मक्का एक ऐसी फसल है जो न तो सूखा सहन कर सकती है और न ही अधिक पानी। अतः खेत में जल निकासी के लिए नलियां बुवाई के लिए अच्छ से तैयार करनी चाहिए और कोशिश करें कि अतिरिक्त पानी को खेत से निकाल दें। मक्का में जल प्रबंधन मुख्य रूप से मौसम पर निर्भर करता है। वर्षा ऋत में मानसूनी वर्षा सामान्य रही तो सिंची की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि भारत में 80 प्रतिशत मक्का विशेष रूप से सिंचित क्षेत्रों में उगाई जाती है। पहली सिचाई में बहुत ही ध्यान देने की आवश्यकता होती है क्योकि अधिक पानी से छओटे पौधों की पैदावार में बढ़ोतरी नहीं होती है। पहली सिंचाई में पानी मेंड़ों के ऊपर नहीं बहनी चाहिए। सिंचाई की दृष्टि से नई पौध, घुटनों तक की ऊंचाई, फूल आने और दाने भराव की अवस्थाएं सबसे ज्यादा संवेदनशील होती है।
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