पुरी जगन्नाथ मंदिर के अनजाने रहस्य | Mystery of Puri Jagannath Temple in Hindi | जगन्नाथ का इतिहास
Автор: R Factiz
Загружено: 2022-12-23
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पूरी जगन्नाथ मंदिर का इतिहास और रहस्य
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पूरी जगन्नाथ मंदिर का इतिहास और रहस्य
हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को ओडिसा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से जगन्नाथ रथ यात्रा निकलती है. इस यात्रा में हिस्सा लेने के लिए दुनियाभर से श्रद्धालू पुरी पहुंचते हैं. इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ तीन भव्य रथों में सवार होकर निकलते हैं.
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का हिंदू धर्म में काफी महत्व है. हर साल पुरी में, इस रथ यात्रा का विशाल आयोजन किया जाता है. हिंदू पंचांग के मुताबिक, हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा निकाली जाती है. बता दें कि उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर का भारत के चार पवित्र धामों में से एक है. भगवान जगन्नाथ की इस रथ यात्रा में उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी शामिल होती हैं.
माना जाता है कि एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा की. बहन की इस इच्छा को पूरा करने के लिए भगवान जगन्नाथ और बलभद्र उन्हें रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल गए. इस दौरान वे अपनी मौसी के घर भी गए जो गुंडिचा में रहती थी. तभी से इस रथ यात्रा की परंपरा शुरू हुई.
रथ यात्रा के मौके पर आज हम आपको जगन्नाथ मंदिर से जुड़े कुछ रहस्यों के बारे में बताने जा रहे हैं. आइए जानते हैं क्या हैं वो रहस्य-
उड़ीसा के पुरी में जगन्नाथ मंदिर है। जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा की (लकड़ी) की मूर्तियां स्थित हैं.
मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण ने अपना देह त्याग किया तो उनका अंतिम संस्कार किया गया था. उनका बाकी शरीर तो पंच तत्वों में मिल गया लेकिन उनका दिल सामान्य और जिंदा रहा. कहा जाता है कि उनका दिल आज भी सुरक्षित है. माना जाता है कि उनका यह दिल भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर है और वह आज भी धड़कता है.
हर बारा साल बाद जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ , बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की मूर्ति को बदला जाता है. जब भी इन मूर्तियों को बदला जाता है उस समय पूरे शहर की बिजली बंद कर दी जाती है. इस दौरान जगन्नाथ पुरी के इस मंदिर के आस पास अंधेरा कर दिया जाता है.
बारा साल में जब ये मूर्तियां बदली जाती है तो मंदिर की सुरक्षा सीआरपीएफ के हवाले कर दी जाती है. किसी का भी प्रवेश इस दौरान वर्जित होता है. अंधेरा होने के बाद कोई भी इस मंदिर में नहीं जा सकता. इन मूर्तियों बदलने के लिए सिर्फ एक पुजारी को मंदिर में जाने की अनुमति होती है. और उसके लिए भी पुजारी के हाथों में दस्ताने पहनाए जाते हैं और अंधेरे के बावजूद आंखों में पट्टी बांधी जाती है, ताकि पुजारी भी मूर्तियों को ना देख सके.
पुरानी मूर्ति से जो नई मूर्ति बदली जाती है उसमें एक चीज वैसी की वैसी ही रहती है वह है ब्रह्म पदार्थ. इस ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में डाल दिया जाता है. आइए जानते हैं क्या है ये ब्रह्म पदार्थ.
ब्रह्म पदार्थ को लेकर यह मान्यता है कि अगर इसे किसी ने भी देख लिया तो उसकी तुरंत मौत हो जाएगी. इस ब्रह्म पदार्थ को श्रीकृष्ण से जोड़ा जाता है.
बहुत से पुजारियों का कहना है कि मूर्तियां बदलते समय जब वह ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से नई मूर्ति में डालते हैं तो उन्हें कुछ उछलता हुआ सा महसूस होता है. उन्होंने कभी भी उसे देखा नहीं लेकिन उसे छूने पर वह एक खरगोश जैसा लगता है जो उछल रहा है.
जगन्नाथ मंदिर से जब यह रथ यात्रा निकलती है तो जगन्नाथ पुरी के राजा सोने की झाडू लगाते हैं.
इस मंदिर से जुड़ा एक और रहस्य यह कि इस मंदिर में एक सींह द्वार है. जब आप इस सींहद्वार से बाहर होते हैं तो आपको समुद्र की लहरों की बहुत तेज आवाज आती है, लेकिन जैसे ही आप सींहद्वार के अंदर प्रवेश करते हैं तो यह आवाजें आना बंद हो जाती हैं.
जगन्नाथ मंदिर के पास ही चिताएं भी जलती हैं, सींहद्वार के अंदर प्रवेश करने से पहले आपको चिताओं की गंध आती है लेकिन द्वार के अंदर प्रवेश करते ही यह गंध आनी बंद हो जाती है.
इस मंदिर से जुड़ा एक और बात की कोई भी पक्षी इस मंदिर के शिकर के पर नही बैठते और कभी भी कोई पक्षी इस मंदिर के ऊपर से उड़ता जाता है। इसी लिए इस मंदिर के ऊपर से हवाई जहाज आदि को भी उड़ने की मनाही है.
इस मंदिर से जुड़ा एक रहस्य यह भी है कि कितनी भी धूप में इस मंदिर की परछाई कभी नहीं बनती.
इस मंदिर के ऊपर एक झंडा लगा हुआ है जिसे रोज शाम को बदला जाता है. इसके पीछे यह मान्यता है कि, अगर इस झंडे को नहीं बदला गया तो यह मंदिर आने वाले अटारा सालों तक बंद किया जाएगा.
इस मंदिर का रखोई घर दुनिया के सबसे बड़े रसोई घरों में से एक है. यहां पांच सौ रसोइये और उनके तीन सौ सहयोगी काम करते हैं. इस मंदिर में कितने भी भक्त आ जाएं लेकिन कभी प्रसाद कम नहीं पड़ता. लेकिन जैसे ही मंदिर के बंद होने का समय आता है तो यह प्रसाद खत्म होने लगता है.
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