বৃন্দাবনের কাহিনী
Автор: GLAM MOM
Загружено: 2025-09-19
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যখন ভোরবেলায় বৃন্দাবনের পথ ধরে হাঁটা হয়, তখন মনে হয় যেন শ্রীকৃষ্ণ এখনও এই বনেই বাঁশি বাজাচ্ছেন। গোপালদের হাসির শব্দ, গরুর ঘণ্টার আওয়াজ আর মাখনের ঘ্রাণ – সব মিলিয়ে এক অদ্ভুত পবিত্র পরিবেশ।
এখানেই ছোট্ট গোপাল কৃষ্ণ গরু চরাতে যেতেন। কখনও গোপালদের সঙ্গে খেলে, কখনও গোপীদের মাখন চুরি করে দুষ্টুমি করতেন। সেই দুষ্টুমির আড়ালেই ছিল ভগবানের অনন্ত করুণার প্রকাশ।
যমুনার তীরে দাঁড়িয়ে ভাবলে চোখের সামনে ভেসে ওঠে কালীদমন লীলা। কৃষ্ণ যেন আজও সেই কালীনাগের ফণার উপর নৃত্য করছেন। আবার কখনও পূতনা, বকাসুর কিংবা অঘাসুর – একে একে অসুরদের বিনাশ করেছেন তিনি, ভক্তদের রক্ষা করেছেন।
কিন্তু বৃন্দাবনের আসল মাহাত্ম্য হলো রাসলীলা। যখন চাঁদের আলোয় যমুনার তীরে কৃষ্ণ বাঁশি বাজাতেন, তখন সব গোপীরা সবকিছু ভুলে ছুটে আসতেন। সেই লীলায় ভক্তি, প্রেম আর আত্মসমর্পণের যে রূপ ফুটে ওঠে – তা আজও বৃন্দাবনের প্রতিটি কুঞ্জে, প্রতিটি বৃক্ষে, প্রতিটি ধূলিকণায় বেঁচে আছে।
বৃন্দাবনে গেলে মনে হয়, কৃষ্ণ শুধু ইতিহাস নন – তিনি আজও বেঁচে আছেন ভক্তের হৃদয়ে।
Walking through the sacred paths of Vrindavan at dawn, one feels as if Krishna himself still roams there, playing his enchanting flute. The laughter of cowherd boys, the jingling of cow-bells, and the fragrance of fresh butter fill the air with divine sweetness.
Here, the little Gopal Krishna tended the cows, played with his friends, and mischievously stole butter from the homes of the gopis. Yet behind every playful act lay the boundless grace of the Supreme.
On the banks of the Yamuna, the vision of Kaliya Daman arises – Krishna dancing fearlessly upon the serpent’s hood. It was here too that demons like Putana, Bakasura, and Aghasura met their end, as Krishna protected his devotees.
But the true essence of Vrindavan is the Rasa Leela. Under the moonlit sky, when Krishna played his flute, the gopis, enchanted, abandoned all and ran to the Yamuna’s shore. In that divine dance, love and devotion found their highest expression.
To walk in Vrindavan is to realize that Krishna is not a figure of the past – He lives even today in the hearts of his devote
सुबह-सुबह जब वृंदावन की गलियों से गुज़रते हैं, तो लगता है मानो आज भी श्रीकृष्ण बाँसुरी बजा रहे हैं। ग्वालबालों की हंसी, गायों की घंटियों की ध्वनि और माखन की महक – सब मिलकर वातावरण को दिव्य बना देते हैं।
यहीं नन्हें गोपाल कृष्ण गाय चराने जाते थे। कभी ग्वालबालों के साथ खेलना, तो कभी गोपियों के घर से माखन चुराना – इन नटखट लीलाओं में भी भगवान की अनंत कृपा छिपी हुई थी।
यमुना तट पर खड़े होकर आज भी कालिय नाग दमन की लीला स्मरण हो जाती है। मानो कृष्ण अभी भी फणों पर नृत्य कर रहे हैं। यहीं पूतना, बकासुर और अघासुर जैसे असुरों का संहार हुआ और भक्तों की रक्षा हुई।
पर वृंदावन की सबसे महान महिमा है रासलीला। जब पूर्णिमा की चाँदनी में कृष्ण बांसुरी बजाते, तो सब गोपियाँ सब कुछ भूलकर यमुना तट की ओर दौड़ पड़तीं। उस नृत्य में प्रेम और भक्ति का सर्वोच्च स्वरूप प्रकट हुआ।
वृंदावन में आकर लगता है कि कृष्ण केवल इतिहास नहीं, बल्कि आज भी हर भक्त के हृदय में जीवित हैं।
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