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Автор: The Story Wala 2.0
Загружено: 2025-09-20
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"पितृ" का मतलब होता है – हमारे पूर्वज, यानी माता-पिता, दादा-दादी, परदादा-परदादी आदि जो इस संसार से विदा हो चुके हैं। हिंदू धर्म और शास्त्रों में यह माना जाता है कि जब कोई मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसका शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है, लेकिन उसकी आत्मा सूक्ष्म रूप में अस्तित्व में रहती है। उन पूर्वजों की आत्माओं को ही पितृ कहा जाता है।
पितृ से जुड़ी मान्यताएँ:
1. श्राद्ध और तर्पण –
पितरों की शांति और आशीर्वाद के लिए हर साल पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण किया जाता है।
2. पितृ ऋण –
यह माना जाता है कि हर इंसान पर तीन ऋण होते हैं – देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। पितृ ऋण का मतलब है कि माता-पिता और पूर्वजों के प्रति हमारे कर्तव्य।
3. आशीर्वाद का महत्व –
यह विश्वास है कि पितृ प्रसन्न हों तो घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है, और यदि पितृ अप्रसन्न हों तो जीवन में बाधाएँ और परेशानियाँ बढ़ सकती हैं।
4. देवताओं से पहले पूजन –
कई जगह परंपरा है कि देवताओं की पूजा से पहले पितरों को तर्पण किया जाता है क्योंकि पितरों की अनुमति से ही देवताओं की कृपा मिलती है।
👉 सरल भाषा में:
पितृ = हमारे वे पूर्वज जो अब जीवित नहीं हैं, लेकिन जिनकी आत्मा और आशीर्वाद हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।
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