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विद्या पूर्ण होने पर बलराम और श्रीकृष्ण गुरु दक्षिणा में गुरु पुत्र पुर्नदत्त को जीवित वापस लाए

Автор: Tilak

Загружено: 2025-12-21

Просмотров: 11167

Описание: गुरुकुल में शिक्षा पूर्ण होने के अंतिम चरण में महर्षि सान्दीपनि श्रीकृष्ण और बलराम को योग विद्या का अत्यंत गूढ़ रहस्य सिखाते हैं - सूक्ष्म शरीर के माध्यम से यात्रा करने की विधि। इस ज्ञान का व्यवहारिक प्रयोग करवाने हेतु वह अपने दोनों शिष्यों को बद्री वन की दिव्य यात्रा करते हैं। वहाँ पहुँचकर श्रीकृष्ण को अपने ही मूल चतुर्भुज स्वरूप भगवान बद्री विशाल का साक्षात्कार होता है, जो उनके अवतार रहस्य का प्रत्यक्ष दर्शन था। वापसी में महर्षि सान्दीपनि मथुरा में महर्षि गर्ग से मिलने रुकते हैं। महर्षि गर्ग जब श्रीकृष्ण को ‘जगत पालक’ कहकर नमन करते हैं, तब महर्षि सान्दीपनि आश्चर्यचकित रह जाते हैं और महर्षि गर्ग से कहते है आपके भेजे हुए इन दोनों शिष्यों ने मात्र चौंसठ दिनों में चौंसठ विद्याओं को ग्रहण कर लिया, अज्ञानतावश वह श्रीकृष्ण–बलराम को असाधारण मानवीय प्रतिभा वाले शिष्य समझते थे। जब महर्षि गर्ग बताते हैं कि श्रीकृष्ण स्वयं भगवान नारायण और बलराम शेषनाग के अवतार हैं। यह सुनकर महर्षि सान्दीपनि को अपने अहंकार का बोध होता है और वह पश्चाताप पूर्वक क्षमा माँगते हैं। भगवान अपने वास्तविक रूप में उन्हें दर्शन देते हैं और आश्वासन देते हैं कि उनकी शिव भक्ति के कारण अंत समय में उन्हें मोक्ष मिलेगा। तत्पश्चात वह गुरु की मर्यादा की रक्षा हेतु उनके स्मृति पटल से यह दिव्य अनुभव मिटा देते हैं। पुनः स्थूल शरीर में लौटने पर श्रीकृष्ण अपने मित्र सुदामा को बताते हैं कि सूक्ष्म यात्रा में वह उसकी माता से मिले थे। विश्वास दिलाने हेतु वह उस पुराना कटोरा प्रकट करते हैं जिसमें सुदामा की माँ उसे माखन खिलाती थी। सुदामा भाव विभोर हो उठता है। शिक्षा पूर्ण होने पर विदा के समय श्रीकृष्ण गुरु से कहते हैं कि शिक्षा का ऋण उतारा नहीं जा सकता, परंतु लोक रीति अनुसार गुरु दक्षिणा आवश्यक है। महर्षि सान्दीपनि उनसे वचन लेते हैं कि वे अपनी शक्तियों का उपयोग सदैव जनकल्याण और अन्याय के विरोध में करेंगे। जब गुरुमाता श्रीकृष्ण से अपने मृत पुत्र पुनर्दत्त को वापस पाने की इच्छा व्यक्त करती है, तो वह दायित्व स्वीकार करते हैं और समुद्र तट पर पहुँचकर वह धनुष की टंकार से समुद्र देव को बुलाते हैं, जो उन्हें बताते हैं कि ‘पाञ्चजन्य’ नामक राक्षस लोगों को समुद्र में खींचकर खा जाता है और सम्भवतः वही पुनर्दत्त को ले गया होगा। श्रीकृष्ण और बलराम समुद्र की तलहटी तक जाकर राक्षस को ललकारते हैं और अग्नि बाण की गर्मी से उसे बाहर निकालते हैं। विशाल रूप धारण कर चुके राक्षस का श्रीकृष्ण युद्ध में वध कर देते हैं, पर उसके शरीर में पुनर्दत्त का अंश भी नहीं मिलता। तब वह यमलोक जाकर यमराज से सहायता लेते हैं। पाञ्चजन्य शंख की नाद पूरे यमलोक को हिला देती है, जिससे यमराज पहचान जाते हैं कि उनके सामने स्वयं नारायण उपस्थित हैं। वे आदरपूर्वक पुनर्दत्त को लौटा देते हैं। पुनर्दत्त को जीवित देखकर गुरु–गुरुमाता भाव विह्वल हो जाते हैं। पुनर्दत्त स्मृति लौट आने पर वह केवल इतना बता पाता है कि समुद्र में गिरा और फिर श्रीकृष्ण–बलराम के सामने ही होश आया। गुरु की शंका निवारण हेतु श्रीकृष्ण एक सरल कथा सुनाकर घटनाओं को सामान्य रूप देते हैं। गुरुमाता श्रीकृष्ण को आशीर्वाद देती हैं कि वे कभी अपनी माता से वियोग न सहें। श्रीकृष्ण बताते हैं कि उनकी दो माताएँ हैं देवकी और यशोदा, इसलिए यह आशीर्वाद उनके लिए पूर्ण नहीं हो सकता। तब गुरुमाता उन्हें आशीर्वाद देती हैं कि उन्हें संसार के दुःख हरने की शक्ति प्राप्त करें और जिससे सारा संसार उनकी पूजा करे। श्रीकृष्ण विनम्रता पूर्वक इस आशीर्वाद को स्वीकार करते हैं। महर्षि सान्दीपनि भगवान शिव से प्रार्थना करते है कि उनकी सारी उपासना का फल श्रीकृष्ण को दे। गुरु की उदारता देख श्रीकृष्ण उनके चरणों को स्पर्श करते हुए कहते है कि आप जैसे उदार गुरु कि शिष्य होना उनके लिए जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि रहेगी।


सम्पूर्ण जगत में भगवान विष्णु के आठवें अवतार एवं सोलह कलाओं के स्वामी भगवान श्री कृष्ण काजीवन धर्म, भक्ति, प्रेम, और नीति का अद्भुत संगम है। वसुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में कारागार में जन्म लेकर गोकुल की गलियों में यशोदा और नंदबाबा के यहाँ पलने वाले, अपनी लीलाओं, जैसे पूतना वध, माखन चोरी, राधा के संग प्रेम, गोपियों के साथ रासलीला और कालिया नाग के दमन के लिए प्रसिद्ध श्री कृष्ण ने युवावस्था में मथुरा कंस का वध करके जनमानस को उसके अत्याचार से मुक्त कराया एवं स्वयं के लिए द्वारका नगरी स्थापना भी की। उनका जीवन केवल लीलाओं तक सीमित नहीं था। उन्होंने समाज को धर्म और कर्म का गूढ़ संदेश देने के लिए महाभारत के युद्ध में पांडवों का मार्गदर्शन किया और अर्जुन के सारथी बनकर उसे "श्रीमद्भगवद्गीता" का उपदेश दिया, जो आज भी जीवन की समस्याओं का समाधान बताने वाला महान ग्रंथ माना जाता है। श्री कृष्ण का जीवन प्रेम, त्याग, और नीति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। आपका प्रिय चैनल "तिलक" श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ा यह विशेष संस्करण "श्री कृष्ण जीवनी" आपके समक्ष प्रस्तुत है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी कथाओं का संकलन किया गया है। भक्ति भाव से इनका आनन्द लीजिए और तिलक से जुड़े रहिए।


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