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भक्ति गेंद चौगान की, भावे कोई ले जाय। कह कबीर कुछ भेद नाहिं, कहां रंक कहां राय॥"
Автор: AdiSanatanTruth
Загружено: 2025-10-19
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भक्ति गेंद चौगान की, भावे कोई ले जाय। कह कबीर कुछ भेद नाहिं, कहां रंक कहां राय॥"
अर्थ:
कबीरदास कहते हैं कि भक्ति एक चौगान (खेल का मैदान) की गेंद जैसी है - जिसे कोई भी उठा सकता है, चाहे राजा हो या भिखारी।
ईश्वर-भक्ति किसी के लिए बंद नहीं है, उसमें कोई ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी या जात-पात का भेद नहीं होता।
जो भी सच्चे भाव से प्रेमपूर्वक ईश्वर को पाने की चाह रखेगा, वही इस "भक्ति की गेंद" को पा सकता है।
Q संदेशः
ईश्वर सबके लिए समान हैं- भक्त का मूल्य उसके हृदय की पवित्रता से होता है, न कि उसके समाज या पद से।
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