आखिर क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा
Автор: Sanatan Sudha
Загружено: 2024-11-02
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गोवर्धन पूजा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जिसे दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है। यह पूजा भगवान श्रीकृष्ण के अद्भुत कार्य और प्रकृति की पूजा के प्रतीक के रूप में की जाती है। गोवर्धन पूजा मुख्य रूप से उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश और ब्रज क्षेत्र में प्रमुखता से मनाई जाती है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व है।
गोवर्धन पूजा का कारण:
गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना से जुड़ी हुई है, जब उन्होंने इंद्र के क्रोध से गोकुलवासियों की रक्षा की थी।
गोवर्धन पूजा की कथा:
इंद्र की पूजा:
ब्रजभूमि के लोग वर्षा के देवता इंद्र की पूजा किया करते थे। उनका मानना था कि इंद्रदेव की कृपा से वर्षा होती है और फसलें अच्छी होती हैं। इसी कारण गोकुलवासी हर साल इंद्रदेव की पूजा करते थे।
भगवान कृष्ण की सलाह:
भगवान कृष्ण ने एक दिन गांववासियों से पूछा कि वे इंद्रदेव की पूजा क्यों करते हैं। उन्होंने कहा कि हमें प्रकृति की पूजा करनी चाहिए, जैसे गोवर्धन पर्वत, जो हमें हरी-भरी घास, जल, और पेड़-पौधों की सौगात देता है। इससे हमारे गाय-बैल, पशु-पक्षी सभी को भोजन मिलता है और वे स्वस्थ रहते हैं।
इंद्र का क्रोध:
जब गोकुलवासियों ने इंद्रदेव की पूजा बंद कर दी और गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू की, तो इंद्रदेव को बहुत क्रोध आया। उन्होंने भारी वर्षा और तूफान भेजकर ब्रजवासियों को दंड देने की ठानी।
गोवर्धन पर्वत का उठाना:
इंद्र के क्रोध से आई भयंकर बारिश और बाढ़ से बचने के लिए, भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। उन्होंने ब्रजवासियों को पर्वत के नीचे शरण लेने को कहा, ताकि वे इंद्रदेव के प्रकोप से सुरक्षित रह सकें।
इंद्र का समर्पण:
सात दिनों तक लगातार बारिश के बावजूद भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा। अंततः इंद्रदेव ने अपनी हार स्वीकार की और कृष्ण की महिमा को समझा। उन्होंने गोकुलवासियों से क्षमा मांगी और भगवान कृष्ण को गोवर्धनधारी के रूप में पूजित किया।
गोवर्धन पूजा का महत्व:
प्रकृति की पूजा: गोवर्धन पूजा प्रकृति की शक्ति और उसके संरक्षण के महत्व का प्रतीक है। इस दिन लोग गोवर्धन पर्वत की मिट्टी से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसकी पूजा करते हैं।
कृष्ण भक्ति: इस पूजा के माध्यम से भगवान कृष्ण की भक्ति की जाती है, जिन्हें गोवर्धन पर्वत उठाने वाले और रक्षक के रूप में पूजा जाता है।
पशुधन की पूजा: इस दिन गोवर्धन पूजा के साथ-साथ गायों और बैल जैसे पशुधन की भी पूजा की जाती है, क्योंकि ये ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं।
प्रकृति और पारिस्थितिकी संतुलन: गोवर्धन पूजा इस बात का प्रतीक है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि यह हमें जीवनदायिनी वस्तुएं प्रदान करती है।
गोवर्धन पूजा का उत्सव:
इस दिन लोग गोवर्धन की आकृति बनाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की जाती है, जो विशेष रूप से ब्रज में महत्वपूर्ण मानी जाती है।
गोवंश और अन्य पशुओं को सजाया जाता है और उनकी विशेष पूजा की जाती है।
इस दिन अन्नकूट का भी आयोजन होता है, जिसमें तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और भगवान को अर्पित किए जाते हैं।
निष्कर्ष: गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण की भक्ति, प्रकृति के प्रति आभार और पर्यावरण संतुलन का प्रतीक है। यह पूजा हमें यह सिखाती है कि हमें प्रकृति और उसके संसाधनों का आदर करना चाहिए और उनके संरक्षण के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।
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