जानें, भगवान की भक्ति के लिए स्वर्ग को त्याग देने वाले महर्षि मुद्गल से जुड़ा प्रसंग | महर्षि मुद्गल
Автор: Vini Ki Vaani
Загружено: 2024-01-03
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महर्षि मुद्गल | #maharishi #mudgal
महर्षि मुद्गल पावन #तीर्थ भूमि #कुरुक्षेत्र के अग्रणी तपस्वी साधकों में से थे। #छात्रों को #शास्त्रों का अध्ययन कराते, #अतिथियों की सेवा में तत्पर रहते तथा दीन-दुखियों की सहायता करने की अपने शिष्यों को प्रेरणा देते। अपना शेष समय भगवान की उपासना में बिताते।
महर्षि दुर्वासा उनके अतिथि सत्कार की परीक्षा लेने के लिए छह हजार शिष्यों के साथ उनके आश्रम में पहुंचे। मुद्गल जी ने सभी का उपयुक्त अतिथि सत्कार किया। दुर्वासा ने उन्हें उत्तेजित करने का प्रयास किया, किंतु मुद्गल जी ने क्रोध को पास भी नहीं फटकने दिया। महर्षि दुर्वासा ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया, ‘‘तुम्हें शीघ्र स्वर्ग की प्राप्ति होगी।’’
देवदूत उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए आए। महर्षि मुद्गल जी ने उनसे पूछा, ‘‘क्या स्वर्ग में मैं वंचितों की सेवा, अतिथियों का सत्कार तथा भगवान की भक्ति कर सकूंगा।’’
उन्हें उत्तर मिला, ‘‘स्वर्ग में आप केवल सुख भोग सकेंगे। वहां कोई कर्म नहीं कर पाएंगे।’’
मुद्गल जी बोले, ‘‘आप वापस चले जाएं, मुझे स्वयं सुख भोगने में नहीं, दूसरों को सुख पहुंचाने में, सेवा और सत्कार करने में परम आनंद प्राप्त होता है। भगवान की भक्ति करके मुझे जो आत्मसंतोष मिलता है वह भला सांसारिक सुखों में कैसे मिल पाएगा। इसलिए मुझे कर्मभूमि पर ही रहने दें।’’
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