Bairang Benaam Chitthiyaan | Ramdarash Mishra | Pratidin Ek Kavita
Автор: Nayi Dhara
Загружено: 2025-08-23
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बैरंग बेनाम चिट्ठियाँ | रामदरश मिश्र
कब से
यह बैरंग बेनाम चिट्ठी लिये हुए
यह डाकिया दर-दर घूम रहा है
कोई नहीं है वारिस इस चिट्ठी का
कौन जाने
किसका अनकहा दर्द
किसके नाम
इस बन्द लिफाफे में
पत्ते की तरह काँप रहा है?
मैंने भी तो
एक बैरंग चिट्ठी छोड़ी है
पता नहीं किसके नाम?
शायद वह भी इसी तरह
सतरों के होंठों में अपने दर्द कसे
यहाँ-वहाँ घूम रही होगी
मित्रों!
हमारी तुम्हारी ये बैरंग लावारिस चिट्टठियाँ
परकटे पंछी की तरह
किसी दिन लावारिस जगहों पर और कभी किसी दिन
पड़ी-पड़ी फड़फड़ाएँगी
कोई अजनबी
इन्हें कौतूहलवश उठाकर पढ़ेगा
तो तड़प उठेगा
ओह!
बहुत दिन पहले किसी ने
ये चिट्ठियाँ
शायद मेरे ही नाम लिखी थीं।
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