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कीट नियंत्रण बिना किसी रसायनिक के।विधि जाने और फ़सल सुरक्षा करे।

Автор: The Bicycle man of India

Загружено: 2022-04-17

Просмотров: 307

Описание: एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन (Integrated pest management (IPM), या Integrated Pest Control (IPC)) नाशीजीवों के नियंत्रण की सस्ती और वृहद आधार वाली विधि है जो नाशीजीवों के नियंत्रण की सभी विधियों के समुचित तालमेल पर आधारित है। इसका लक्ष्य नाशीजीवों की संख्या एक सीमा के नीचे बनाये रखना है। इस सीमा को 'आर्थिक क्षति सीमा' (economic injury level (EIL)) कहते हैं।

एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें फसलों को हानिकारक कीड़ों तथा बीमारियों से बचाने के लिए किसानों को एक से अधिक तरीकों को जैसे व्यवहारिक, यांत्रिक, जैविक तथा रासायनिक नियंत्रण इस तरह से क्रमानुसार प्रयोग में लाना चाहिए ताकि फसलों को हानि पहुंचाने वालें की संख्या आर्थिक हानिस्तर से नीचे रहे और रासायनिक दवाईयों का प्रयोग तभी किया जाए जब अन्य अपनाए गये तरिके से सफल न हों।

आई. पी. एम. उददेश्य
१. फसल की बुवाई से लेकर कटाई तक हानिकारक कीड़ो, बीमारियों तथा उनके प्राकृतिक शत्रुओं की लगातार एवं
व्यवस्थित निगरानी रखना।

२. कीड़ो एवं बीमारियो को उनके आर्थिक हानि स्तर से नीचे रखने के लिए सभी उपल्बध नियंत्रण विधियों जैसे व्यवहारिक,
यांत्रिक, अनुवांशिक, जैविक, संगरोध व रासायनिक नियंत्रण का यथायोग्य करना।

३. कीड़ो एवं बिमारियों के आर्थिक हानि स्तर (ई.आई.एल.) को पार कर लेने पर सुरक्षित कीटनाशकों को सही समय पर
सही मात्रा में प्रयोग करना।

४. कृषि उत्पादन में कम लागत लगाकर अधिक लाभ प्राप्त करने तथा साथ साथ वातावरण को प्रदूषण से बचाना।

आई. पी. एम. क्यों ?
1. दिन प्रतिदिन फसलों में रासायनों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है जिससे रासायनों के अवशेषों की मात्रा भी वातावरण में
बढ़ती जा रही है जिससे मनुष्य तथा अन्य प्राणियों के स्वास्थय पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है और कई प्रकार की बीमारियां जन्म ले रही हैं।

2. रासायनों के अन्धाधुन्ध तथा बिना सोचे समझे बार-बार प्रयोग से कीड़ों तथा बीमारियों में प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती
है जिससे रासायनों के निर्धारित मात्रा का प्रयोग करने से ये कीड़े या बीमारियां नही मरती बल्कि कुछ दिनों के बाद इनकी संख्या और बढ़ जाती है। ऐसी परिस्थिति में रासायनों का प्रयोग करना पर्यावरण के प्रदूषण को बढ़ाना है।

3. पाया गया है कि फसलों को हानि पहुचानें वाले कीड़े को मारने वाले कीड़े वातावरण में हमेशा मौजूद रहते हैं जिससे
हानिकारक तथा लाभदायक कीड़ो का प्राकृतिक संतुलन हमेशा बना रहता है और फसलों का कोई आर्थिक हानि नही पंहुचती। लेकिन रासानिक दवाईयों के प्रयोग से मित्र किड़े शीघ्र मर जाते हैं क्योंकि वे प्रायः फसल की ऊपरी सतह पर शत्रु कीड़ो काी खोज में रहते है। और कीटनाशकों के साधे संपर्क में आ जाते हैं जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता हैं। इसका परिणाम यह होता है कि जो कीड़े अब तक आर्थिक हानि पहुँचाने की क्षमता नहीं रखते थे अर्थात उनकी संख्या कम थी, वे भी नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं।

4. रासायनिक दवाईयों के प्रयोग से किसानों का फसल उत्पादन खर्च बढ़ जाता है जिससे किसानो के लाभ में काफी
कमी हो जाती है।

रासायनो के दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए किसानों के लिये आई. पी. एम. विधि अपनाना अनिवार्य है।

आई. पी. एम. कैसे ?
बीज के चयन तथा बीजाई से लेकर फसल की कटाई तक विभिन्न विधियां , जो प्रयोग समयानुसार एवं क्रमानुसार आई. पी.एम. विधि में अपनाई जाती है, इस प्रकार हैं:-

1. व्यवहारिक नियन्त्रण
2. यांत्रिक नियन्त्रण
3. अनुवांशिक नियन्त्रण
4. संगरोध नियन्त्रण
5. जैविक नियन्त्रण
6. रासायनिक नियन्त्रण

व्यवहारिक नियन्त्रण
व्यवहारिक नियन्त्रण इसके अंतगर्त निन्मलिखित तरिके अपनाएं जाते है:-

खेतों से फसल अवशेषों का हटाना तथा मेढ़ों को साफ रखना।
गहरी जुताई करके उसमें मौजूदा कीड़ों तथा बिमारियों की विभिन्न अवस्थओं तथा खरपतवारों को नष्ट करना।
खाद तथा अन्य तत्वों की मात्रा निर्धारिण के लिए मिट्टी परिक्षण करवाना।
साफ, उपयुक्त एवं प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना तथा बोने से पहले बीज उपचार करना।
उचित बीज दर एवं पौध अन्तरण।
पौधारोपण से पहले पौधें की जड़ो को जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडरमा बिरडी से उपचारित करें ।
फसल बीजने और काटने का समय इस तरह सुनिशिचित करना ताकि फसल कीड़ो तथा बीमारियों के प्रमुख प्रकोप से बचे सके।
पौधें की सही सघनता रखे ताकि पौधे स्वस्थ रहे।
समुचित जल प्रबन्धन
उर्वरक प्रबन्धन अर्थात उर्वरक की सही मा़त्रा उचित समय पर देना। फसल की समय से उचित नमी में सन्तुलित खाद व बीज की मात्रा डाले ताकि पौधे प्रारम्भिक अवस्था में स्वस्थ रह कर खरपतवारों से आगे निकल सके।
फसल चक्र अपनाना अर्थात एक ही फसल को उसी खेत में बार बार न बीजना। इससे कई कीड़ो तथा बीमारियों का प्रकोप कम हो जाता है।
स्मकालिक रोपण।
खरपतपार का समुचित प्रबन्ध करना। यह पाया गया है कि बहुत से खरपतवार कई तरह की बीमारियों तथा कीडों को संरक्षण देते हैं।
बीजाई के 45 दिनों तक खेतों से खरपतवारों को फूल आने की अवस्था से पहले ही निकाल दें।
यांत्रिक नियन्त्रण
इस विधि से नर कीटों में प्रयोगशाला में या तो रासायनों से या फिर रेडिऐशन तकनिकी से नंपुसकता पैदा की जाती है और फिर उन्हें काफी मात्रा में वातावरण में छोड़ दिया जाता है ताकि वे वातावरण में पाए हाने वाले नर कीटों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें। लेकिन यह विधि द्वीप समूहों में ही सफल पाई जाती है।

संगरोध नियन्त्रण
इस विधि में सरकार के द्वरा प्रचलित कानूनों को सख्ती से प्रयोग में लाया जाता है जिसके तहत कोई भी मनुष्य कीट या बीमारी ग्रस्त पौधों को एक स्थान से दूसरे स्थानों को नहीं ले जा सकता। यह दो तरह का होता है जैसे घरेलू तथा विदेशी संगरोध।

जैव नियन्त्रण एकीकष्त नाशीजीव प्रबधन का महत्वपूर्ण अंग है। इस विधि में नाशीजीवी व उसके प्राकृतिक शत्रुओ के जीवनचक्र, भोजन, मानव सहित अन्य जीवों पर प्रभाव आदि का गहन अध्ययन करके प्रबन्धन का निर्णय लिया जाता है।

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कीट नियंत्रण बिना किसी रसायनिक के।विधि जाने और फ़सल सुरक्षा करे।

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