દાનલીલા - ગઢતેં ગ્વાલિન ઊતરી - સ્વર - ગો.શ્રી અંજનરાયજી, મૃદંગ - ગો.શ્રી નવનીતરાયજી.
Автор: Shreeji Dwar (Mota Mandir)
Загружено: 2025-09-03
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गढ़तें ग्वालिनि ऊतरी शीश महीकौ माँट ॥
आड़ौ कन्हैया है रह्यौ रोकी ब्रजवधू बाट ॥ नागरि दान दै ॥१॥ कहाँकी हौ तुम ग्वालिनी कहा तिहारौ नाम ॥
बरसानेकी ग्वालिनी प्यारी राधा मेरौ नाम ॥ मोहन जान दै ॥२॥ वृंदावनकी कुँजमें अचरा पकस्यौ दौर ॥
नाम दानकौ लेत हौ लाला चाहत हौ कछु और ॥३॥
तुम अकेले हम अकेली बात नहीं कछु जोग ॥
तुमतौ चतुर प्रवीन हौ कहा कहेंगे लोग ॥४॥
सँगकी सखी सब दूरि निकसि गईं हम रोकी बनमाँझ ॥ घरतौ दारुन सास है अब होन लगी है साँझ ॥५॥
तुम ओढ़ी है कामरी हम पेहेस्यौ है चीर ॥
उमड़ि घुमड़ि आई बादरी अब कहा बरसावत नीर ॥६॥
प्रेम मगन ग्वालिन भई हरिकौ दरशन पाय ॥
मुख तें बचन न आवही सो लगी ठगौरी जाय ॥७॥
लै मटुकी आगें धरी परी श्याम के पाँय ॥
मन भावै सो लीजिये बचै सो बेचन जाँय ॥८॥
सुख बाढ्यौ आनँद भयौ रही श्याम गुन गाय ।।
सुंदर शोभा देखिकें जन सूरदास बलि जाय।॥९॥
શ્રીજીદ્વાર, (મોટામંદિર), ઝાંઝરડા રોડ, જૂનાગઢ....
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