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बीरबल ने भिखारी को दान देने से मना क्यों कर दिया?🤔 बीरबल भिखारी को नदी में लेकर क्यों घुसा?🤔 कहानी

Автор: Naresh Kumar

Загружено: 2025-09-26

Просмотров: 19

Описание: पैर और चप्पल : अकबर-बीरबल की कहानी
Pair Aur Chappal : Akbar-Birbal Story
26092025(1445)
बीरबल बहुत नेक दिल इंसान थे। वे
सदैव दान करते रहते थे और इतना ही नहीं,
बादशाह से मिलने वाले इनाम को भी
ज्यादातर गरीबों और दीन-दुःखियों में
बांट देते थे, परन्तु इसके बावजूद भी
उनके पास धन की कोई कमी न थी। दान
देने के साथ-साथ बीरबल इस बात से भी
चौकन्ने रहते थे कि कपटी व्यक्ति उन्हें
अपनी दीनता दिखाकर ठग न लें।
एक दिन बादशाह अकबर ने दरबारियों के
साथ मिलकर एक योजना बनाई कि देखते
है कि सच्चे दीन दुःखियों की पहचान
बीरबल को हो पाती है या नही।
एक दिन जब बीरबल पूजा-पाठ करके
मंदिर से आ रहे थे तब एक भिखारी ने
बीरबल के सामने आकर कहा, “हुजूर!
मेरे आठ छोटे बच्चे हैं,मै और मेरे बच्चे
सात दिनों से भूखे हैं...भूखे को खाना
खिलाना बहुत पुण्य का कार्य है,मुझे
उम्मीद है कि आप मुझे कुछ दान देकर
अवश्य ही पुण्य कमाएंगे।”
बीरबल ने उस आदमी को सिर से पांव तक
देखा और एक क्षण में ही पहचान लिया
कि वह ऐसा नहीं है, जैसा वह दिखावा
कर रहा है।
बीरबल मन ही मन मुस्कराए और बिना
कुछ बोले ही एक ऐसा कठिन रास्ता चुना
जिस पर आगे चलकर एक नदी पार करनी
पड़ती थी। भिखारी भी बीरबल के पीछे-
पीछे चलता रहा। बीरबल ने नदी पार करने
के लिए जूती उतारकर हाथ में ले ली। उस
व्यक्ति ने भी अपने पैर की फटी पुरानी
जूती हाथ में लेने का प्रयास किया।
भिखारी जैसे ही नदी पार करने लगा बीरबल
ने गौर से उसके पैरों पर नजर गड़ाई।
भिखारी के पैर साफ- सुथरे, मुलायम चमड़ी
के नजर आ रहे थे।
बीरबल ने नदी पार करने के बाद कंकरीली
जमीन से बचने के लिए जूती पहनना चाहा
लेकिन भिखारी को परखने के लिए उसने
ऐसा किया नहीं और धीरे धीरे आगे बढ़ता
रहा जबकि भिखारी ने नदी पार करते ही
तुरंत जूती पहनकर बीरबल के पीछे- पीछे
चलते हुए एक बार फिर आवाज़ लगाई -
“दीवानजी! दीन दुखिया की पुकार आपने
सुनी नहीं?”
बीरबल बोले, “जो मुझे पापी बनाए मैं
उसकी पुकार कैसे सुन सकता हूँ? ”
“क्या? आप मेरी सहायता
करके पापी बन जांएगे?”
“हां, वह इसलिए कि शास्त्रों में लिखा है
कि बच्चे का जन्म होने से पहले ही भगवान
उसके भोजन का प्रबन्ध करते हुए उसकी
मां के स्तनों में दूध दे देता है, उसके लिए
भोजन की व्यव्स्था कर देता है। यह भी
कहा जाता है कि भगवान इन्सान को
भूखा उठाता है पर भूखा सुलाता नहीं है।
इन सब बातों के बाद भी तुम अपने
आपको सात दिन से भूखा कह रहे हो।
कुल मिलाकर यहीं समझना चाहिये
कि भगवान तुमसे रूष्ट हैं और वे
तुम्हें और तुम्हारे परिवार को भूखा
रखना चाहते हैं और मैं उसका सेवक हूँ,
अगर मैं तुम्हारा पेट भर दूं तो ईश्वर
मुझ पर रूष्ट होगा ही। मैं ईश्वर के विरुद्ध
नहीं जा सकता,मैं तुम्हें भोजन नहीं
करा सकता, क्योंकि कोई पापी ही
ऐसा कर सकता है।”
बीरबल का ऐसा जवाब सुनकर भिखारी
वहां से चला गया और बादशाह को पूरी घटना
बताई।
अगले दिन बीरबल जब दरबार गया तब
बादशाह ने बीरबल से पूछा, “बीरबल तुम्हारे
धर्म-कर्म की बड़ी चर्चा है पर तुमने कल
एक भूखे को निराश ही लौटा दिया, क्यों?”
“आलमपनाह! मैंने किसी भूखे को नहीं,
बल्कि एक ढोंगी को लौटा दिया था ।
“बीरबल! तुमनें कैसे जाना कि यह वाकई
भूखा न होकर, ढोंगी है?”
“उसके पैरों को और पैरों मे पहनीं चप्पलों
को देखकर।
“माना कि चप्पल उसे भीख में मिल सकती थी,
पर उसके कोमल, मुलायम पैर तो
भीख में नहीं मिले थे,जो कंकड क़ी गड़न
सहन न कर सके।”
बादशाह अकबर बीरबल की चतुराई से बहुत
खुश हुए।

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