नर नारायण की कथा | पाण्डवों का युद्ध अभ्यास | श्री कृष्ण महाएपिसोड
Автор: Tilak
Загружено: 2025-02-04
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"भारत में पर्वतराज हिमालय की दो चोटियों को आज भी नर और नारायण नाम से जाना जाता है। श्रीमद्भागवत महापुराण के दूसरे स्कन्ध के सातवें अध्याय में लिखा है कि यहीं पर सतयुग में दो महात्मन नर और नारायण ने बद्रिकावन के समीप गंधमादन पर्वत पर कई हजार वर्ष तपस्या की थी। यह दिव्य स्थान आज भी बद्रीनाथ धाम के निकट ही है। श्री वामन पुराण के छठवें अध्याय में कहा गया है कि ब्रह्मा जी ने अपने हृदय से महाराज धर्म को उत्पन्न किया था और नर -नारायण इन्हीं महाराज धर्म के पुत्र थे। श्रीमद् देवीभागवत के चौथे स्कन्ध में भी नर नारायण का वर्णन किया गया है। नर नारायण की कठोर तपस्या के कारण देवलोक में इन्द्र का आसन भी डोलने लगा था। उसे लगा कि ये तपस्वी उसका इन्द्रासन लेना चाहते हैं। उसने वसन्त और अन्य अप्सराओं को इन तपस्वियों में कामाग्नि भड़काकर उनकी तपस्या भंग करने भेजा। अप्सरा वसन्त ने नर नारायण के चरणों में दिव्य पुष्प रखे। पुष्प के स्पर्श और सुगन्ध से नर नारायण ने अपनी आँखें खोली। अप्सरा वसन्त ने कहा कि हम देवलोक की श्रेष्ठ अप्सराएं हैं और देवराज इन्द्र ने आपकी तपस्या से प्रसन्न होकर इस तपोवन में आपको सुख देने के लिये हमें भेजा है। इस पर नारायण ने अप्सराओं के रूप और सौन्दर्य का अभिमान तोड़ने के लिये अपनी जंघा से एक अतिसुन्दर अप्सरा प्रकट की और उससे कहा कि तुम हमारे जंघा के ऊपरी भाग से उत्पन्न हुई हो, इसलिये हम तुम्हें उर्वशी नाम प्रदान करते हैं। इसके बाद उन्होंने उर्वशी और स्वर्ग की अप्सराओं के बीच नृत्य व गायन की प्रतियोगिता करायी। देवलोक की अप्सराओं की हार होती है। तब नारायण ने कहा कि तुम लोगों की समझ में आ गया होगा कि देवलोक के सारे सुख मेरी जंघाओं के नीचे दबे हुए हैं। तुम उपहार स्वरूप उर्वशी को अपने साथ स्वर्ग ले जाओ और इन्द्र से कहना कि अपने लौकिक सुखों की गिनती में एक गिनती और बढ़ा लें। पुराणों में उल्लेख है कि सतयुग के यही नर और नारायण द्वापर युग में श्रीकृष्ण और उनके सखा अर्जुन के रूप में पैदा हुए। इसकी पुष्टि स्वयं श्रीकृष्ण ने गीता के चौथे अध्याय के पाँचवें श्लोक में की है जिसमें वे अर्जुन से कहते हैं कि इसके पहले मेरे और तुम्हारे कई जन्म हुए हैं। मुझसे सबका स्मरण है किन्तु तुम्हें इसका ज्ञान नहीं है। द्वापर युग में अवतार लेने और कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने द्वारिकापुरी बसा ली। अर्जुन अपने भाईयों के साथ हस्तिनापुर में थे और धनुर्विद्या में प्रवीणता हासिल कर रहे थे। इन्हीं दिनों श्रीकृष्ण बलराम को अपनी चिन्ता बताते हैं कि उनका परम सखा अर्जुन एक भीषण अग्निकाण्ड से गुजरने वाला है। वह बलराम को बताते हैं कि शकुनि ने सौगन्ध खायी हुई है कि युधिष्ठिर को युवराज घोषित किये जाने पर वह उसे मरवा देगा। उधर जरासंध की राजसभा में इस बात पर मंत्रणा होती है कि युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का युवराज बनाने से कृष्ण की शक्ति और बढ़ जायेगी। तब शल्य जरासंध को बताता है कि गांधार नरेश शकुनि युधिष्ठिर को मरवाने की योजना बना रहा है किन्तु उसे आशंका है कि इसके बाद हस्तिनापुर में जनविद्रोह भड़क सकता है। इसलिये शकुनि ने अपना गुप्तचर भेजकर हमसे सहायता माँगी है। जरासंध शकुनि की सहायता का वचन देता है। हस्तिनापुर में दुर्योधन मामा शकुनि को ताना देते हुए कहता है कि मुझे अपने मित्र कर्ण की बात मानकर विद्रोह कर देना चाहिये था और अपने पिता से राज छीन लेना चाहिये था। इस पर शकुनि कहता है कि पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य और कृपाचार्य के होते हुए राजा के विरुद्ध विद्रोह करना असम्भव है। इसके बाद शकुनि युधिष्ठिर समेत सभी पांच पाण्डवों को रास्ते से हटाने का अपना षड्यन्त्र दुर्योधन को बताता है। वह कहता है कि महाराज धृतराष्ट्र वारणावत तीर्थ की शिव पूजा में इस बार युवराज युधिष्ठिर को भेज रहे हैं। मैंने वारणावत के पुराने महल की दीवारों में लाख भरवा दी हैं। लाख बहुत जल्दी आग पकड़ती है। जब युधिष्ठिर उस महल में रात्रि विश्राम करेगा, उसमें आग लगा दी जायेगी। पूजा में पांचों पाण्डव साथ जायें, इसके लिये भी शकुनि एक चाल चलता है। वह अपने कुछ आदमियों को वारणावत के पुरोहित बनाकर महाराज धृतराष्ट्र के सामने भेजता है। ये नकली पुरोहित महाराज से प्रार्थना करते हैं कि वारणावत की प्रजा महाराज पाण्डु के सभी पांच पुत्रों के दर्शन का सुख उठाना चाहती है। इसलिये युवराज युधिष्ठिर के साथ उनके सभी भाई वारणावत पधारें। महारानी गांधारी धृतराष्ट्र से पांचों पाण्डवों के साथ कुन्ती को भी वारणावत तीर्थ भेजने की संस्तुति करती है। धृतराष्ट्र अनुमति देता है।
श्रीकृष्णा, रामानंद सागर द्वारा निर्देशित एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है। मूल रूप से इस श्रृंखला का दूरदर्शन पर साप्ताहिक प्रसारण किया जाता था। यह धारावाहिक कृष्ण के जीवन से सम्बंधित कहानियों पर आधारित है। गर्ग संहिता , पद्म पुराण , ब्रह्मवैवर्त पुराण अग्नि पुराण, हरिवंश पुराण , महाभारत , भागवत पुराण , भगवद्गीता आदि पर बना धारावाहिक है सीरियल की पटकथा, स्क्रिप्ट एवं काव्य में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ विष्णु विराट जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे सर्वप्रथम दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर प्रसारित 1993 को किया गया था जो 1996 तक चला, 221 एपिसोड का यह धारावाहिक बाद में दूरदर्शन के डीडी नेशनल पर टेलीकास्ट हुआ, रामायण व महाभारत के बाद इसने टी आर पी के मामले में इसने दोनों धारावाहिकों को पीछे छोड़ दिया था,इसका पुनः जनता की मांग पर प्रसारण कोरोना महामारी 2020 में लॉकडाउन के दौरान रामायण श्रृंखला समाप्त होने के बाद ०३ मई से डीडी नेशनल पर किया जा रहा है, TRP के मामले में २१ वें हफ्ते तक यह सीरियल नम्बर १ पर कायम रहा।
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