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नवरात्रि की व्रत कथा

नवरात्रि की पौराणिक कथा

Автор: Balaji,Explore the india

Загружено: 2025-09-30

Просмотров: 37

Описание: क्यों बनाते हैं हम कन्या भोजन l मां दुर्गा का नाम दुर्गा क्यों पड़ा l मां दुर्गा l #jay ma durga

नवरात्रि के दौरान, विशेषकर अष्टमी और नवमी तिथि पर, कुंवारी कन्याओं को भोजन कराना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इसे 'कन्या पूजन' या 'कंजक' के नाम से भी जाना जाता है। इसके पीछे कई गहरे आध्यात्मिक और धार्मिक कारण हैं:

*देवी का साक्षात स्वरूप:* शास्त्रों और मान्यताओं के अनुसार, दो से दस वर्ष की आयु की कन्याओं को देवी दुर्गा का साक्षात स्वरूप माना जाता है। नवरात्रि में नौ दिनों तक देवी के विभिन्न रूपों की आराधना के बाद, कन्याओं को भोजन कराकर उन्हें सम्मान दिया जाता है। यह माना जाता है कि इससे देवी माँ प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

*व्रत का पारण:* नवरात्रि के व्रत कन्या पूजन के बाद ही पूर्ण माने जाते हैं। यह देवी के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। भक्तों का मानना है कि देवी स्वयं कन्याओं के रूप में उनके घर पधारकर भोग ग्रहण करती हैं।

*भैरव की पूजा:* कन्या पूजन में नौ कन्याओं के साथ एक बालक को भी भोजन कराने की परंपरा है। इन बालक को 'लंगूर' या भैरव का रूप माना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने देवी की रक्षा के लिए हर शक्तिपीठ के साथ एक-एक भैरव को नियुक्त किया था। इसलिए, देवी की पूजा के साथ भैरव की पूजा भी आवश्यक मानी जाती है, जिससे पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

*प्रिय भोग:* कन्याओं को आमतौर पर हलवा, पूड़ी और चने का भोग लगाया जाता है। यह व्यंजन सात्विक और देवी को प्रिय माने जाते हैं। कन्याओं को भोजन कराने के बाद उन्हें अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा और उपहार भी दिए जाते हैं।

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#### मां दुर्गा का नाम 'दुर्गा' क्यों पड़ा?

देवी भागवत पुराण और अन्य पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, माँ पार्वती का नाम 'दुर्गा' एक शक्तिशाली असुर का वध करने के कारण पड़ा।

*दुर्गमासुर का वध:* एक समय में दुर्गम नामक एक अत्यंत पराक्रमी दैत्य था। उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वेदों को प्राप्त कर लिया और यह वरदान भी पा लिया कि कोई भी देवता उसे युद्ध में परास्त नहीं कर सकेगा। वेदों के लुप्त हो जाने से पृथ्वी पर हाहाकार मच गया, यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान बंद हो गए और भयंकर अकाल पड़ गया।

*देवी का अवतार:* देवताओं और मनुष्यों की करुण पुकार सुनकर, आदिशक्ति माँ पार्वती ने एक सौम्य और अत्यंत तेजोमयी रूप धारण किया। उन्होंने अपनी अनगिनत आँखों से पृथ्वी की दुर्दशा देखी, जिससे उनकी आँखों से जल की धाराएं बहने लगीं और नदियां फिर से भर गईं। उन्होंने अपने शरीर से उत्पन्न शाक-सब्जियों से संसार का भरण-पोषण किया, जिस कारण वह 'शाकम्भरी' कहलाईं।

*नामकरण:* इसके बाद देवी ने दुर्गमासुर के साथ भयंकर युद्ध किया और उसका वध कर दिया। दुर्गम दैत्य का संहार करने के कारण ही देवी का नाम 'दुर्गा' पड़ा। इस प्रकार, 'दुर्गा' नाम दुष्टों का नाश करने वाली और अपने भक्तों को दुर्गम से दुर्गम संकटों से बचाने वाली शक्ति का प्रतीक है।

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