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तपस्या और प्रेम मंजिल दूर नहीं है ।रामधारी सिंह दिनकर
Автор: JINDGI TAK
Загружено: 2020-08-08
Просмотров: 5807
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अक्सर मंजिल के पास आते -आते लोग हौसला छोड़ने लगते हैं ।ऐसे समय में कवि की चार पंक्तियां संजीवनी बनकर उन्हें दोबारा स्थापित करती है।
दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,
लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा।
जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही,
अम्बर पर घन बन छाएगा ही उच्छ्वास तुम्हारा।
और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।
Ramdhari Singh Dinkar ki yad me unke kalmo se rachi chand line.
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