जाने चने की जैविक खेती कैसे करे
Автор: desi.haryanvi.culture
Загружено: 2025-03-15
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चने की जैविक खेती करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण चरणों का पालन करना आवश्यक होता है। जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बजाय जैविक तरीकों का उपयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और पर्यावरण को नुकसान नहीं होता।
1. भूमि का चयन एवं तैयारी
हल्की दोमट से लेकर मध्यम काली मिट्टी चने की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
खेत की गहरी जुताई करें और अच्छी तरह से गुड़ाई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लें।
खेत में गोबर की खाद (10-15 टन प्रति एकड़) या वर्मीकम्पोस्ट (3-4 टन प्रति एकड़) डालें।
हरी खाद (ढैंचा या सनई) का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए करें।
2. बीज का चयन एवं उपचार
स्वस्थ और प्रमाणित जैविक बीज का चुनाव करें।
बीज उपचार:
राइजोबियम कल्चर से 5 ग्राम प्रति किग्रा बीज का उपचार करें, जिससे नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद मिलेगी।
ट्राइकोडर्मा विरिडी (5 ग्राम प्रति किग्रा बीज) से उपचार करने से फफूंदी जनित रोगों से सुरक्षा मिलती है।
जैविक पेस्टिसाइड नीम की पत्ती का काढ़ा या गौमूत्र से बीज को उपचारित कर सकते हैं।
3. बुवाई का समय एवं विधि
रबी मौसम: अक्टूबर के अंत से नवंबर के मध्य तक।
बुवाई की विधि: कतारों में 30-40 सेमी की दूरी और पौधों के बीच 10-12 सेमी का अंतर रखें।
बीज को 5-6 सेमी गहराई में बोएं।
4. सिंचाई प्रबंधन
पहली सिंचाई: बुवाई के 30-35 दिन बाद करें।
दूसरी सिंचाई: फली बनने की अवस्था में करें।
अधिक सिंचाई से बचें क्योंकि अधिक नमी जड़ सड़न रोग को बढ़ावा देती है।
5. जैविक खाद एवं पोषण प्रबंधन
गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट: 10-15 टन प्रति एकड़।
नीम की खली: 50-60 किग्रा प्रति एकड़।
जैव उर्वरक: फास्फेट सॉल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया (PSB) का उपयोग करें।
2% छाछ या 5% गौमूत्र के घोल का छिड़काव करें।
6. खरपतवार नियंत्रण
गुल्ली कर्सी या मल्चिंग विधि से खरपतवार नियंत्रित करें।
नीम तेल (2%) या गौमूत्र (10%) का छिड़काव करने से खरपतवार नियंत्रित होते हैं।
समय-समय पर हल्की गुड़ाई करें।
7. कीट एवं रोग प्रबंधन (जैविक विधियों से)
मुख्य कीट:
चने की इल्लियां (कटवर्म, हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा)
नीम तेल (5%) का छिड़काव करें।
ट्राइकोग्रामा परजीवी ततैया का प्रयोग करें।
फेरोमोन ट्रैप (5-6 प्रति एकड़) लगाएं।
चने की फली छेदक
10% नीम तेल का छिड़काव करें।
गौमूत्र व लहसुन-अदरक के घोल का छिड़काव करें।
मुख्य रोग:
जड़ सड़न रोग
बुवाई से पहले ट्राइकोडर्मा से बीज उपचार करें।
अच्छी जल निकासी वाली भूमि का चयन करें।
उकठा रोग (Wilt Disease)
खेत में सड़ी हुई गोबर खाद का उपयोग करें।
रोगग्रस्त पौधों को नष्ट करें और खेत को स्वच्छ रखें।
8. फसल कटाई और भंडारण
चने की फसल फरवरी-मार्च में पकने लगती है।
जब पौधे का 80% हिस्सा सूख जाए तो कटाई करें।
सुखाकर भंडारण करें और नीम की पत्तियां मिलाकर रखें, ताकि कीट न लगें।
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