श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 2 अर्जुन विषाद योग गीता से अपने जीवन को जोड़े और एक सफल व्यक्ति बने
Автор: श्रीमद्भागवत गीता
Загружено: 2025-11-17
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श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 2 अर्जुन विषाद योग गीता से अपने जीवन को जोड़े और एक सफल व्यक्ति बने
🕉️ श्रीमद्भागवत गीता: अध्याय 2 (सांख्य योग)
श्रीमद्भागवत गीता का दूसरा अध्याय गीता का सार माना जाता है। इसकी शुरुआत अर्जुन के शोक और मोह से होती है, जहाँ वह युद्ध न करने का निर्णय लेते हैं, क्योंकि उन्हें अपने संबंधियों को मारने का पाप लगेगा।
प्रमुख विषय-वस्तु
अर्जुन का विषाद: अर्जुन अपने स्वजनों को देखकर मोहग्रस्त हो जाते हैं और युद्ध करने से मना कर देते हैं।
श्री कृष्ण का उपदेश: इसके उत्तर में, भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कर्म योग और ज्ञान योग (सांख्य योग) का उपदेश देते हैं।
आत्म-तत्व का ज्ञान (अमरता): कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि आत्मा अविनाशी, नित्य, और अजन्मा है। शरीर केवल पुराने वस्त्र की तरह है जिसे आत्मा त्याग कर नया धारण कर लेती है। इसलिए, किसी को मारना या मरना केवल शरीर का होता है, आत्मा का नहीं।
स्वधर्म का पालन: कृष्ण कहते हैं कि एक क्षत्रिय होने के नाते अर्जुन का धर्म धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना है। धर्म-युद्ध न करना कीर्ति खोना और पाप कमाना है।
कर्म का सिद्धांत: भगवान उपदेश देते हैं कि मनुष्य को फल की चिंता किए बिना अपना कर्तव्य (कर्म) करना चाहिए। सफलता और विफलता, लाभ और हानि, सुख और दुख को समान समझना चाहिए।
स्थितप्रज्ञ के लक्षण: इस अध्याय का एक महत्वपूर्ण भाग स्थितप्रज्ञ (स्थिर बुद्धि वाले) पुरुष के लक्षणों का वर्णन करता है—वह व्यक्ति जो इच्छाओं का त्याग करके आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, जो सुख-दुख में सम रहता है।
सार रूप में, यह अध्याय अर्जुन को कायरता त्याग कर, आत्मा की अमरता को समझकर और फल की आसक्ति से मुक्त होकर धर्मानुसार कर्म करने की प्रेरणा देता है।
यह वीडियो श्रीमद् भगवद गीता के अध्याय 2 की शिक्षाओं के बारे में है, जिसमें भावनात्मक स्थिरता, आत्मा, मृत्यु और पुनर्जन्म जैसे विषय शामिल हैं।
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