Bhagwan Buddh ka panchsheel Marg पंचशील
Автор: Jamuna Inspired
Загружено: 2023-10-13
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Bhagwan Buddh ka panchsheel Marg पंचशील#पंचशील मार्ग by Jamuna inspired
Jamuna inspired
हिन्दी में इसका भाव निम्नवत है-
1. हिंसा न करना, 2. चोरी न करना, 3. व्यभिचार न करना, 4. झूठ न बोलना, 5. नशा न करना।
पालि में यह निम्नवत है-
1- पाणातिपाता वेरमणी-सिक्खापदं समादयामि।।
2- अदिन्नादाना वेरमणी- सिक्खापदं समादयामि।।
3- कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी- सिक्खापदं समादयामि।।
4- मुसावादा वेरमणी- सिक्खापदं समादयामि।।
5- सुरा-मेरय-मज्ज-पमादठ्ठाना वेरमणी- सिक्खापदं समादयामि।।
बौद्ध धर्म में आम आदमी भी बुद्ध बन सकता है उसे बस दस पारमिताएं पूरी करनी पड़ती हैं
एक आदर्श मानव समाज कैसा हो?
दुनियां का हर मनुष्य किसी न किसी दुःख से दुखी है. तथागत बुद्ध ने बताया कि इस दुःख की कोई न कोई वजह होती है और अगर मनुष्य दुःख निरोध के मार्ग पर चले तो इस दुःख से मुक्ति पाई जा सकती है. यही चार आर्य सत्य हैं:
अर्थात
1. दुःख है.
2. दुःख का कारण है.
3. दुःख का निरोध है.
4. दुःख निरोध पाने का मार्ग है.
बौद्ध धर्म के चौथे आर्य सत्य, दुःख से मुक्ति पाने का रास्ता, अष्टांगिक मार्ग कहलाता है.
जन्म से मरण तक हम जो भी करते है, उसका अंतिम मकसद केवल ख़ुशी होता है. स्थायी ख़ुशी सुनिश्चित करने के लिए हमें जीवन में इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए.
1. सम्यक दृष्टि : चार आर्य सत्य में विश्वास करना
2. सम्यक संकल्प : मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
3. सम्यक वाक : हानिकारक बातें और झूठ न बोलना
4. सम्यक कर्म : हानिकारक कर्म न करना
5. सम्यक जीविका : कोई भी स्पष्टतः या अस्पष्टतः हानिकारक व्यापार न करना
6. सम्यक प्रयास : अपने आप सुधरने की कोशिश करना
7. सम्यक स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना
8. सम्यक समाधि : निर्वाण पाना और अहंकार का खोना
पञ्चशील
#baudh Darshan ka panchshil Marg
बौद्ध धर्म के पांच अतिविशिष्ट वचन हैं जिन्हें पञ्चशील कहा जाता है और इन्हें हर गृहस्थ इन्सान के लिए बनाया गया है.
1. पाणातिपाता वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी
मैं जीव हत्या से विरत (दूर) रहूँगा, ऐसा व्रत लेता हूँ.
2. अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी
जो वस्तुएं मुझे दी नहीं गयी हैं उन्हें लेने से मैं विरत रहूँगा, ऐसा व्रत लेता हूँ.
3. कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी
काम (रति क्रिया) में मिथ्याचार करने से मैं विरत रहूँगा ऐसा व्रत लेता हूँ.
4. मुसावादा वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी
झूठ बोलने से मैं विरत रहूँगा, ऐसा व्रत लेता हूँ.
5. सुरामेरयमज्जपमादट्ठाना वेरमणी सिक्खापदम् समदियामी
मादक द्रव्यों के सेवन से मैं विरत रहूँगा, ऐसा वचन लेता हूँ
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