ना मे भक्तः प्रणश्यति’ – भगवद गीता का अमर वचन और प्रेमानंद जी की दिव्य व्याख्या
Автор: अनंतशास्त्र
Загружено: 2025-06-25
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मेरा वीडियो सनातन धर्म से जुड़ा हुआ है से लोग ज्यादा से ज्यादा जागृत हो सके कि बिना वजह को किसी भी पालतू जानवर या किसी भी जानवर को हत्या न करें और धर्म के नाम पर विरुद्ध ना करेंभगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण का यह वचन – ‘ना मे भक्तः प्रणश्यति’ यानी मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होता – केवल शब्द नहीं, यह दिव्य सत्य की घोषणा है।
पर इसका वास्तविक अर्थ क्या है? क्या हर भक्त इस वचन में आता है? क्या केवल नाम जप ही पर्याप्त है?
इस प्रश्न को प्रेमानंद महाराज जी के श्रीमुख से सुनना किसी आध्यात्मिक तीर्थ के समान है। उन्होंने इस वचन को न केवल अर्थ के स्तर पर, बल्कि हृदय की गहराइयों में उतर कर समझाया है – जहाँ भक्ति केवल क्रिया नहीं, जीवन का उद्देश्य बन जाती है।
इस वीडियो में महाराज जी यह स्पष्ट करते हैं कि "भक्त" कौन होता है, और "नाश न होना" का तात्पर्य केवल शारीरिक अस्तित्व नहीं, आत्मा की अक्षुण्ण स्थिति है।
ईश्वर का यह वचन उसके सच्चे शरणागत को अडिग विश्वास और अमोघ सुरक्षा कवच देता है।
👉 यदि आप जीवन में भक्ति के सही स्वरूप को जानना चाहते हैं,
👉 यदि आप ईश्वर की कृपा को स्थायी रूप से अपने जीवन में पाना चाहते हैं,
तो यह वीडियो आपके लिए एक प्रकाश-पथ बन सकता है।
अंत तक देखें, क्योंकि हर पल में छिपा है ईश्वर का रहस्य।
यह केवल उपदेश नहीं, यह जीवन की दिशा है।
इसे अपने मित्रों, परिवार और हर उस आत्मा से साझा करें जो ईश्वर से जुड़ना चाहती है।
🌼 जय श्रीकृष्ण। हरि ओम्। 🌼
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