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Автор: Adhyatmyogi Veersagarji

Загружено: 2025-02-26

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Описание: #jainphilosophy #jainology
L8-8#सन्निकर्ष पार्ट२-प.पू.१०८ अध्यात्मयोगी श्री वीरसागरजी महाराज #om#guru#mrbeast#art#love #samaysaar#meditation#prayer#amaizing#jain #jainism#dravyaguna#afternoon

PUBLISHED ON--THURSDAY-27 FEB 2025

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भवतापनाशक जिन-अध्यात्म का सार आचार्यवर श्री.कुन्दकुन्ददेव ने आज से २००० वर्ष पहिले श्री समयसार शास्त्र में भरकर हम सभी जीवों पर महान उपकार किया है। यह ग्रंथराज ऐसा अपूर्व ग्रंथ है जिस पर प.पू.१०८ अध्यात्मयोगी वीरसागरजी महाराज जी ने तात्पर्यवृत्ति पर हिन्दी भावानुवाद [भाषा टीका] की है। ग्रंथ के प्रारम्भ में तथा प्रत्येक अधिकार के अंत में मुनिवरजी वीरसागरजी द्वारा सम्पादित-अनुवादित तथा विश्लेशित अध्यात्म न्यायदीपिका (टीका) के आधार से तथा आत्मानुभूति करने में सहायक जानकर कुछ न्याय के प्रकरण एवं चार्ट इस ग्रंथ के परिशिष्ट रुप से दे दिये गये हैं जिससे पाठकों को न्याय के महत्वपूर्ण सिद्धान्तो की आवश्यक प्रारम्भिक जानकारी प्राप्त हो जाये और समयसार ग्रंथाधिराज का मर्म ग्रहण हो सके। आत्मन्यायाचार्य, न्यायवेत्ता, अध्यात्मयोगी मुनिराज जी के प्रवचनों में सरलतम भाषा में सूक्ष्म चर्चा तो है ही और अनेक बार अन्य ४ अनेयोंगें के सन्दर्भ देकर ४ अनुयोंगों का मिलान करके दिखाने से विषय अतिस्पष्ट हो जाता है। करके मुझे आशा है कि आत्मार्थीजन इस समयसार प्रवचन का रसपान कर ज्ञान और वैराग्य की प्रेरणा लेंगे तथा इन प्रवचनो में समाहित भावों को समझकर निज स्वाध्याय में वृध्दि कराकर इस के लाभ के लिये अन्य साधर्मियों को यह link --    / @108veersagarji   अग्रेषित भी करेंगे। धन्यवाद। ॐ#morning prayer #samaysaar gatha #morning routines

निज निज नाना पर्यायेषु तदेव इदं इति द्रव्यस्य नित्यस्वभाव:।आ.प.११३,ये नित्यम द्रव्यम् आश्रित्य वर्तन्ते ते गुणा:। सर्वार्थसिद्धि
तद् भाव अव्ययम् नित्यं। त.सू., ---निष्क्रियो पारिणामिक:।---समयसार ता.वृ.३२०

#को न विमुह्यति शास्त्रसमुद्रे---इस युग के देश विदेश में ख्यातिप्राप्त विद्वान आ.डाॅ.श्री. हुकुमचंदजी भारील्लजी द्वारा उनके नयचक्र में --द्रव्यार्थिक & पर्यायार्थिक २ नय आगम के कहे गये है।, वह आगम के न होकर मुल २ नयों में से निश्चयनय(नय/प्रमाणवाक्य/प्रमाणसप्तभंगी) के उपभेद है। आगम आधार आलाप पद्धती आ.देवसेन & नयचक्र-आ.माईल्लधवलजी गा १८२-७। भव्य जीवों को यह यथायोग्य संकेत है।ॐ नम:।

प्रमाणवाक्यमें 'एव'का प्रयोग होता ही नहीं" यह मान्यता कैसी गलत?रा.अ४सू४२वा 15-Pl ref Lecture No 111&112—OF “ADHYTMA NYAYDIPIKA-HINDI- https://youtube.com/live/BNBq3SPnrmA?...

अवग्रह मतिज्ञान सम्यक् प्रमाण ज्ञान पर्याय होकर दर्शनोपयोग उपरांत निजशुद्धात्म प्रभु को स्पष्ट, संशय रहित जानति है। आगम प्रमाण आ.अमृतचंद्राचार्य की तत्वार्थसूत्र टीका।---- पर-अपर गुरुओं के माध्यम से प्राप्त हुआ सर्वज्ञ मत कौन से भव्य जीवों को मान्य नहीं होगा?-- अवश्य मान्य होगा ही--होगा।--ॐ नम:।--स्वयम सिद्ध अकृत्रिम नंदिश्वर स्वरुपोSहम्।जैनं जयतु शासनम्।

पञ्चास्तिकाय संग्रह गाथा १६५ शब्दोंके अर्थ

स्वसमय = सम्यग्दृष्टि
परसमय = मिथ्यादृष्टि
सूक्ष्मपरसमय = सूक्ष्ममिथ्यादृष्टि (देशनालब्धि प्रायोग्यलब्धि करणलब्धि मे स्थित जीव)
स्थूलपरसमय = स्थूलमिथ्यादृष्टि

---नरनारकादिजीवविशेष,अजीव, पुण्य, पाप,संवर, निर्जरा,बन्ध,मोक्ष व्यावहारिक९तत्वोंसे मै टंकोत्कीर्ण एकज्ञायकस्वभावभाव द्वारा अत्यन्तभिन्नपणा होनेसे शुद्ध हूॅं---समयसार गा 38 आ.ख्या.टीका

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👉प्रवचनसार गा.सुत्र १०६-- आ.अमृतचंद्रजी अतत् भाव की सिध्दि एक ही द्रव्य मे बताते हुए हेतु देते है ---कि प्रदेशभेद नहीं है। इससे भी अन्योन्याभाव की सिद्धि प्रत्येक द्रव्य में हो जाती है।
👆 Also pl ref Chart No 26 - ---को न विमुह्यति शास्त्र समुद्रे---शास्त्राधार से सुक्ष्म भुल में सुधार कर लेना ही सम्यग्दर्शन रुपी रत्न की संरक्षण करना है।----ॐ नम:।

वस्तु स्वरुप समजने के लिए, द्रव्य गुण पर्यांय का स्वरुप अवश्य समझना चाहिए।
सर्वप्रथम
[१] द्रव्य-गुण- पर्याय स्वभाव/उत्पाद-व्यय-ध्रुव स्वभाव /प्रमाण- नय- निक्षेप स्वभाव
[२] ६ द्रव्य, पंचास्तिकाय आदि ग्रंथ
[३] समयसारादि अध्यात्मिक ग्रंथ यह क्रम माईल्ल धवल आचार्यादियों ने बताया है।
यह जिनाज्ञा के पालन से निश्चित ही अभिष्ट सिद्धि अति शिघ्रता से मिलती ही है। समयसारादि सभी शास्त्र श्रावक के लिये ही है, किन्तु स्वाध्याय के ३ वर्ग के सेवन का ही राजमार्ग बताया गया है। ॐ नम:।

👇"हिन्दी प्रवचन _अत्यन्त २ महत्वके प्रमाण नय निक्षेपादि विषयपर"_प्रवक्ता प.पू.१०८श्री वीरसागरजी महाराज Link👇https://youtube.com/playlist?list=

👉समयसार ४७ शक्ति आत्मख्याति प्रवचन Link👇   • #समयसार ४७ शक्ति#Samaysaar 47 Shakti-प.पु ...  

👉न्यायदीपिका प्रवचन अध्याय १,२,३ -प्रवक्ता: प.पू.अपूर्व चैतन्य ऋद्धिधारी १०८ श्री वीरसागरजी महाराज प्रवचन Link👇   • #अध्यात्मन्यायदीपिका #AdhytmaNyaydipika  

👉ध्यान लिंक👇# DhyanLink👇    • #ध्यान #Dhyan  

👉समयसार प्र. Link👇https://youtube.com/playlist?list=

मुनिराज श्री के प्रवचनों में सरलतम भाषा में सूक्ष्म चर्चा तो है ही और अनेक बार अन्य ४ अनुयोगों के सन्दर्भ देकर ४ अनुयोगों का मिलान करके दिखाने से विषय अतिस्पष्ट हो जाता है। धन्यवाद।ॐ नम:।

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