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रावल रतनसिंह का इतिहास🙏🙏 मेवाड़ का प्रसिद्ध जौहर😊🙏

History of Raval Ratan Singh

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रावल रतनसिंह

रावल रतनसिंह का इतिहास

वीरता का महत्व

Автор: RU Special

Загружено: 2025-01-10

Просмотров: 450

Описание: रावल रतन सिंह का इतिहास

रावल रतन सिंह समर सिंह का पुत्र था, रतन सिंह अपने पिता समर सिंह की मृत्यु के पश्चात मेवाड़ की गद्दी पर 1302 ईस्वी में बैठे। कुंभलगढ़ प्रशस्ति के वह एकलिंग महात्म्य के अनुसार कुंभकरण ने नेपाल में गुहिल वंश की स्थापना की। रावल रतन सिंह रावल शाखा के अंतिम राजा थे, रावल रतन सिंह की रानी का नाम पद्मिनी था। रतन सिंह का इतिहास वीरता और साहस के साथ भरा है, जो भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है।


कुछ विद्वानों ने चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का कारण रतन सिंह की अति सुंदर रानी पद्मिनी को माना है।

28 जनवरी 1303 को अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ पर आक्रमण के लिए दिल्ली से रवाना हुआ। लेखक अमीर खुसरो ने लिखा है कि सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी सेना का शाही शिविर गंभीरी और बेड़च नदियों के मध्य लगाया जो की चित्तौड़गढ़ किले के पास है।
अलाउद्दीन खिलजी ने अपना स्वयं का शिविर चितौड़ी नामक पहाड़ी पर लगाया था, वहीं से अलाउद्दीन रोज चित्तौड़ के किले के घेरे के संबंध में निर्देश देता था। लगभग 8 माह तक शाही सेना को का घेरा किले के बाहर रहा।

8 माह के बाद किले के द्वारा खोले गए क्योंकि रसद सामग्री की कमी होने लगी, किले के द्वार पर रतन सिंह के सेनापति गोरा और बादल के नेतृत्व में राजपूत सैनिकों ने केसरिया वस्त्र धारण कर चित्तौड़ दुर्ग के द्वार खोलकर शत्रु पर टूट पड़े और वीरगति को प्राप्त हुए, गोरा रानी पद्मिनी का चाचा तो बादल रानी पद्मिनी का भाई था। जब महल के बाहर चारों ओर सर्वनाश दिखाई दे रहा था तब महल के अंदर 1600 राजपूत रानियां ने रानी पद्मिनी के नेतृत्व में जौहर किया जो चित्तौड़ का प्रथम साका था।

अमीर खुसरो के अनुसार 26 अगस्त 1303 को अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ पर अधिकार हो गया जब अलाउद्दीन खिलजी महल के अंदर पहुंचा तो उसने देखा कि 1600 राजपूत रानियां ने जौहर कर लिया है उनके महल सुनने पड़े थे किले में चारों ओर आग और राख के ढेर दिखाई दे रहे थे।
यह सब देखकर अलाउद्दीन खिलजी आग बबूला हो उठा और चित्तौड़ की निर्दोष जनता का कत्लेआम शुरू कर दिया जिसमें उसने चित्तौड़ की 30000 आम जनता का कत्लेआम का आदेश दे दिया। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी कुछ दिनों तक चित्तौड़ में रुककर अपने पुत्र खिज्र खां को चित्तौड़ का शासन सौंपकर दिल्ली लौट गया तथा उसने चित्तौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद रख दिया।

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