कर्मयोग और सन्यास युग में क्या अंतर है
Автор: मां ने सिखाया गीता में श्री कृष्णा ने क्या कहा🙏
Загружено: 2025-11-02
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भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने कर्मयोग और सन्न्यासयोग दोनों का महत्व बताया है, लेकिन दोनों में सूक्ष्म अंतर भी समझाया है 👇
🔹 कर्मयोग —
इसमें व्यक्ति कर्म करता है, लेकिन फल की आसक्ति (लालसा) नहीं रखता।
👉 मतलब, काम करो पर परिणाम की चिंता मत करो।
यही “निष्काम कर्म” कहलाता है।
श्रीकृष्ण कहते हैं — “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
🔹 सन्न्यासयोग —
इसमें व्यक्ति कर्मों का त्याग करता है, यानी संसारिक कर्मों से दूर होकर ध्यान और आत्मज्ञान में लीन रहता है।
✨ फर्क यह है कि
सन्न्यासी कर्म छोड़ देता है।
कर्मयोगी कर्म करते हुए आसक्ति छोड़ देता है।
श्रीकृष्ण ने अंत में यही कहा कि —
👉 “कर्मयोग सन्न्यास से श्रेष्ठ है,” क्योंकि कर्म करते हुए भी मन को ईश्वर में लगाना ही सच्चा योग है। 💫
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