मंगल देव के जन्म की कथा | वराह अवतार की कथा | मंगल ग्रह | पुराणों की कहानियाँ | ज्योतिष शिक्षा
Автор: Bhuvneshwari_tattva_astrology
Загружено: 2025-02-01
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आज मैं आपके लिए मंगल देव के जन्म की एक अद्भुत और रोचक कथा लेकर आया हूं। ज्योतिष में जिसे हम मंगल ग्रह के रूप में जानते हैं, उनके जन्म की कहानी पुराणों में बड़ी महत्वपूर्ण है।
हम इस सीरीज़ में सबसे पहले ग्रहों की उत्पत्ति की कहानियाँ जानेंगे ताकि आगे चलकर वैदिक ज्योतिष सीखते समय इन ग्रहों से पहले से ही परिचित हो सकें। ये कहानियाँ बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये हमें बताते हैं कि इन ग्रहों के महत्व की शुरुआत कहां से हुई। चाहे आप पुराणों और वैदिक कथाओं में रुचि रखते हों या ज्योतिष सीखने के इच्छुक हों, हमारे साथ जुड़े रहें और चैनल को सब्सक्राइब करें।
मंगल देव के जन्म की दो कहानियाँ प्रचलित हैं – एक शिव पुराण से और दूसरी देवी भागवत पुराण से। पहले शिव पुराण की कथा जानते हैं।
शिव पुराण के अनुसार मंगल देव की उत्पत्ति
सती के वियोग से आहत होकर भगवान शिव गहरे शोक में डूब गए थे। इस दुख को सहन न कर पाने के कारण वे कैलाश पर्वत पर गहरी तपस्या में लीन हो गए और बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट गए। उनके इस अलगाव ने पूरे ब्रह्मांड में असंतुलन उत्पन्न कर दिया क्योंकि भगवान शिव की ऊर्जा ब्रह्मांड में संतुलन बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक थी।
एक दिन तपस्या के दौरान भगवान शिव के ललाट से एक अग्निमयी पसीने की बूंद धरती पर गिरी। इस दिव्य ऊर्जा से एक तेजस्वी बालक प्रकट हुआ। उसका रंग लाल था, चार भुजाएं थीं और उसकी अद्वितीय आभा से चारों दिशाएं चमक उठीं।
धरती माता, देवी भूमि ने इस बालक को देखा और तुरंत उससे ममता का भाव जुड़ गया। उन्होंने उसे गोद में उठाकर प्रेमपूर्वक दूध पिलाया और उसे अपने पुत्र के रूप में अपनाने का निर्णय लिया।
जब भगवान शिव ने यह देखा, तो उन्होंने देवी भूमि को आशीर्वाद देते हुए कहा, "यह बालक, जो मेरी ऊर्जा से उत्पन्न हुआ है, अब तुम्हारा पुत्र होगा। इसे 'भौम' के नाम से जाना जाएगा, जिसका अर्थ है धरती पुत्र। यह ब्रह्मांड में समृद्धि और शक्ति लाएगा।" भगवान शिव ने उसे ग्रह का दर्जा दिया। इस प्रकार मंगल देव का जन्म हुआ।
अब जानते हैं देवी भागवत पुराण की कथा:
इस कथा का संबंध भगवान विष्णु के वराह अवतार से है।
एक बार हिरण्याक्ष नामक असुर ने धरती माता का हरण कर उन्हें गहरे समुद्र में छिपा दिया। धरती के स्थान से हट जाने के कारण ब्रह्मांड में असंतुलन उत्पन्न हो गया। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।
भगवान विष्णु ने वराह (दिव्य वराह) का रूप धारण किया। अपनी अपार शक्ति के साथ उन्होंने समुद्र में गोता लगाया, हिरण्याक्ष का संहार किया और देवी भूमि को बचाकर अपने दांतों पर उठाकर ब्रह्मांड में पुनः स्थापित किया।
इस उपकार से प्रसन्न होकर देवी भूमि ने भगवान विष्णु को समर्पित होकर उनकी आराधना की। उनके इस मिलन से एक तेजस्वी और शक्तिशाली पुत्र का जन्म हुआ। इस बालक को मंगल नाम दिया गया, जो शक्ति, साहस और कर्म का प्रतीक बना।
दोनों कथाएँ मंगल देव की दिव्य उत्पत्ति और ज्योतिष में उनके महत्व को दर्शाती हैं।
शिव पुराण में वे भगवान शिव की ऊर्जा से उत्पन्न होकर देवी भूमि द्वारा पाले गए पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वहीं देवी भागवत पुराण में वे विष्णु और देवी भूमि के मिलन से उत्पन्न होते हैं।
वैदिक परंपरा में मंगल देव को साहस, कर्म और योद्धा भावना के देवता के रूप में पूजा जाता है। उनका स्वरूप भगवान कार्तिकेय (दक्षिण भारत में मुरुगन) से मेल खाता है। जिन लोगों की कुंडली में मंगल दोष होता है, वे भगवान हनुमान की आराधना करते हैं क्योंकि उनकी शक्ति और भक्ति मंगल के प्रतिकूल प्रभाव को शांत करती है।
इस प्रकार मंगल देव की कथा हमें बताती है कि दिव्य ऊर्जा और धरती की स्थिरता का संतुलन ही सच्ची शक्ति का प्रतीक है।
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