सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक याचिका | Ashwini Upadhyay | Dil Se Deshi
Автор: Dil Se Deshi
Загружено: 2025-10-15
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आज भारत की अदालत में एक ऐतिहासिक बहस हुई — “देश के हर स्कूल में टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) अनिवार्य किया जाए।”
यह सिर्फ एक याचिका नहीं, बल्कि भारत के हर बच्चे के लिए समान शिक्षा, समान अवसर और समान गुणवत्ता की मांग है।
माननीय सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर आज महत्वपूर्ण सुनवाई हुई और पूरा मामला अब माननीय मुख्य न्यायाधीश (CJI) के पास बड़ी बेंच के गठन के लिए भेजा गया है।
याचिका का मुख्य उद्देश्य
याचिका में कहा गया है कि भारत के सभी स्कूलों — चाहे वे किसी धर्म, संस्था या समुदाय द्वारा संचालित हों — में 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए TET अनिवार्य होना चाहिए।
“Right to Education” (RTE) केवल स्कूलों में दाखिला देने का अधिकार नहीं, बल्कि “Equal Quality Education” का अधिकार है।
जब शिक्षा मौलिक अधिकार है, तो शिक्षकों की योग्यता में भेदभाव कैसे हो सकता है?
वर्तमान स्थिति – असमान शिक्षा प्रणाली
अभी देश में Minority Schools को TET से छूट मिली हुई है।
यानी कुछ स्कूलों में शिक्षक बिना TET पास किए पढ़ा सकते हैं, जबकि बाकी स्कूलों में यह अनिवार्य है।
यह सीधा संविधान के “समानता” के अधिकार का उल्लंघन है।
जब बच्चा हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई नहीं बल्कि “भारतीय” है — तो उसके लिए शिक्षा की गुणवत्ता भी समान होनी चाहिए।
माइनॉरिटी की परिभाषा पर सवाल
भारत के संविधान या किसी भी कानून में “माइनॉरिटी” की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है।
आज तक यह तय नहीं हुआ कि माइनॉरिटी की पहचान “राष्ट्रीय”, “राज्य” या “जिला” स्तर पर होगी।
क्या 1%, 2% या 3% जनसंख्या माइनॉरिटी मानी जाएगी — इस पर कोई गाइडलाइन नहीं।
फिर भी माइनॉरिटी के नाम पर स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, वजीफा और लोन योजनाएं चल रही हैं।
2012 का बदलाव और मदरसों की छूट
2012 में कांग्रेस सरकार ने चुनावी लाभ के लिए “Right to Education Act” में संशोधन किया।
इसमें Section 1(4) और 1(5) जोड़कर मदरसों को RTE के दायरे से बाहर कर दिया गया।
परिणाम — अब यह नहीं पता चलता कि मदरसों में कौन पढ़ा रहा है, क्या सिलेबस है, और फंडिंग कहां से आती है।
ये सभी प्रश्न शिक्षा की पारदर्शिता और संविधानिक समानता पर गंभीर सवाल उठाते हैं।
आर्टिकल 30 की गलत व्याख्या
सरकारें आर्टिकल 30 का गलत अर्थ निकालकर “माइनॉरिटी एजुकेशन इंस्टीट्यूशन” के नाम पर धार्मिक स्कूल खोलने की अनुमति दे रही हैं।
जबकि Article 30 में “Education Institution” शब्द है, “Religious Institution” नहीं।
इसका मतलब — कोई भी नागरिक सेक्युलर शिक्षा संस्थान खोल सकता है, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय का हो।
मदरसे, जो धार्मिक शिक्षा देते हैं, वे आर्टिकल 25 (Freedom of Religion) के दायरे में आते हैं, न कि आर्टिकल 30 में।
सामाजिक और राष्ट्रीय प्रभाव
जब शिक्षा को धर्म से जोड़ा जाता है, तो बच्चे बचपन से ही “विभाजन” सीखते हैं।
कुछ राज्यों में स्कूल खोलने के लिए लोग जानबूझकर अपने धर्म परिवर्तन कर रहे हैं ताकि उन्हें “माइनॉरिटी” का दर्जा मिल सके।
यह न केवल संविधान के खिलाफ है, बल्कि भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए भी खतरा है।
सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई
आज की सुनवाई में कोर्ट ने सभी तर्कों को ध्यान से सुना।
याचिका में 15 से अधिक “Substantial Questions of Law” उठाए गए हैं।
अदालत ने माना कि यह विषय राष्ट्रीय महत्व का है और इस पर विस्तृत विचार आवश्यक है।
इसलिए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को मुख्य न्यायाधीश (CJI) के पास बड़ी बेंच के गठन के लिए भेजा है।
शिक्षा का असली अर्थ – One Nation, One Curriculum
“Right to Education” का मतलब केवल पढ़ाई नहीं — बल्कि One Nation, One Syllabus, One Standard of Teachers है।
जब हर बच्चा समान है, तो हर शिक्षक की योग्यता भी समान होनी चाहिए।
TET को हर स्कूल, हर राज्य और हर बोर्ड में अनिवार्य किया जाना चाहिए।
भविष्य के लिए संदेश
यह याचिका सिर्फ कानून नहीं बदलती — यह सोच बदलने की शुरुआत है।
भारत तभी मजबूत होगा जब उसका शिक्षक मजबूत होगा।
धर्म या जाति से ऊपर उठकर “एक भारत, समान शिक्षा” का सपना ही असली राष्ट्रनिर्माण है।
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