मेथा के बंपर उत्पादन के लिए वैज्ञानिक सलाह || Mentha Ki Kheti | Mentha Farming | News Potli || CIMAP
Автор: News Potli
Загружено: 2024-03-15
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क्या आप मेंथा लगा चुके हैं, या फिर रोपाई करने की तैयारी करने वाले हैं? अगर आप गेहूं काटकर मेंथा लगाएंगे तो पौधे से पौधे के बीच की दूरी कितनी होनी चाहिए, कौन सी खाद फसल में डालनी चाहिए इसकी पूरी जानकारी आपको वीडियो में मिलेगी.......सीमैप के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राजेश कुमार ने मार्च-अप्रैल में मेंथा की खेती करने के टिप्स बताये हैं जिससे फसल का उत्पादन अच्छा होगा और तेल भी अधिक निकलेगा।
मेंथा की रोपाई का सही समय फरवरी से लेकर अप्रैल तक है। मेंथा की नई किस्में, खेती की उन्नत तकनीक की खोज करने वाले संस्थान सीमैप के वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक अगर किसान कुछ बातों का ध्यान रखें तो मेंथा 3 महीने में ही बहुत अच्छी कमाई हो सकती है।मेंथा की खेती करने वाले ज्यादातर किसान “सिम उन्नत किस्म” की रोपाई करते हैं। डॉ. राजेश वर्मा कहते हैं, “प्रदेश (यूपी) के लगभग 90 % किसान सिम उन्नत किस्म की खेती करते हैं। क्योंकि इसमें तेल ज्यादा निकलती है।” रोपाई करते समय लाइन की लाइन से दूरी 2 फीट रखनी चाहिए। सिम उन्नत के अलावा कोशी, सिम क्रांति की भी बड़े पैमाने पर खेती होती है। डॉ. वर्मा के किसानों को सलाह देते हैं कि जो किसान गेहूं की कटाई करके मेंथा की खेती करना चाहते हैं वे कोशी किस्म,सिम क्रांति किस्म का चुनाव करें। गेहूं के खेत अप्रैल महीने में खाली होता है ऐसे में किसानों को इस बात का विशेष ध्यान रखें कि लाइन की लाइन से दूरी 1.5 फीट रखनी चाहिए व पौधे से पौधे की दूरी 12 से 15 सेमी रखनी चाहिए। अप्रैल के महीने में मेंथा की फसल लगाने से फसल को समय कम मिलता है ऐसे में पौधे कम दूरी पर लगाने चाहिए। ज्यादातर किसान मेंथा की खेती समतल जमीन पर करते हैं, लेकिन अगर वो अपनी खेती के तरीके में थोड़ा बदलाव कर दें तो कम लागत, कम सिंचाई में ज्यादा उत्पादन मिलेगा।
सीमैप के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राजेश वर्मा कहते हैं, “मेंथा या मिंट की खेती रेज्ड बेड (नालियां बनाकर) विधि से करनी चाहिए। ऐसे में उत्पादन क्षमता 20 से 30 प्रतिशत बढ़ जाती है। इस किस्म में दूसरी किस्मों की अपेक्षा पानी कम लगता है। अगर रोपाई मार्च में हो जाती है तो जाती है तो जून तक किसान दो कटाई कटाई कर सकते हैं। रेज्ड या नाली विधि मतलब आलू की बोने की तरह ट्रैक्टर से नालियां बनाई जाएं और उसके ऊपर हिस्से में किनारे पर तैयार पौध की रोपाई की जाए।
डॉ. वर्मा कहते हैं, “रेज्ड बेड विधि से मेंथा की ऱोपाई करने पर उर्वरक कम लगता है और पौधों की संख्या भी बढ़ जाती है। इसके अलावा खरपतावर की समस्या भी कम होती है।’ नाली के ऊपर रोपाई का एक फायदा ये भी होता है कि निराई, गुड़ाई का खर्च बच जाता है, साथी सिंचाई, उर्वरक या कीटनाशक का छिड़काव करने के दौरान पौधों को नुकसान नहीं होता है।खेत में गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालने से रासायनिक उर्वरक की मात्रा में 25 से 50% तक कम की जा सकती है।
डॉ. राजेश वर्मा कहते हैं, “मेंथा की फसल में जिंक सल्फेट व आयरन सल्फेट 12 से 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर डालने से 20 से 25 प्रतिशत अधिक तेल निकलता है। जब फसल 45 दिन की हो जाए तो उसमें जिंक सल्फेट 12 से 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें। 60 दिन की फसल होने पर आयरन सल्फेट 12 से 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें। यूरिया,फास्फोरस, पोटैशियम नाइट्रोजन की पर्याप्त में डालें। इससे उत्पादन अच्छा होता है।
जो किसान गेहूं की कटाई करके मेंथा की खेती करना चाहते हैं वे कोशी किस्म,सिम क्रांति किस्म का चुनाव करें। गेहूं की से खेत अप्रैल के महीने में खाली होता है ऐसे में किसानों को इस बात का विशेष ध्यान रखें कि लाइन की लाइन से दूरी 1.5 फीट रखनी चाहिए व पौधे से पौधे की दूरी 12 से 15 सेमी रखनी चाहिए। अप्रैल के महीने में मेंथा की फसल लगाने से फसल को समय कम मिलता है ऐसे में पौधे कम दूरी पर लगाने चाहिए।
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