आवेश के मात्रक -~part -05
Автор: GSA Classes
Загружено: 2025-05-14
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Описание:
विद्युत आवेश
आवेश की उत्पति की इतिहास
आवेशों की विशेषताए
विद्युतीय बल
आवेशों की प्रकार
कुलाम के नियम
विद्युत धारा
आमीटर /एमीटर
विद्युत विभववोल्टमिटर
एमीटर तथा वोल्टमिटर
ओम के नियम
प्रतिरोध
प्रतिरोध को प्रभावित करने वाले कारक
प्रतिरोधों के संयोजन
प्रतिरोधकता
विद्युत धारा के उष्मीय / तापीय प्रभाव –
जुल के नियम
विधुत ऊर्जा
विद्युत शक्ति
विद्युत हीटर
विद्युत फ्यूज
विद्युत चूल्हावैद्युतिक आवेश के गति या प्रवाह में होने पर उसे वैद्युतिक धारा कहते हैं। मात्रात्मक रूप से, आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं। इसका SI मात्रक आँपैर है। एक कूलॉम प्रति सेकण्ड की दर से प्रवाहित विद्युत आवेश को एक आँपैर धारा कहेंगे।किसी सतह, जैसे किसी तांबे के चालक के खंड (cross-section) से प्रवाहित विद्युत धारा की मात्रा (एम्पीयर में मापी गई) को परिभाषित किया जा सकता है।
यदि किसी चालक के किसी अनुप्रस्थ काट से Q कूलम्ब का आवेश t समय में निकला; तो औसत धारा
I
=
Q
t
{\displaystyle I={\frac {Q}{t}}}
मापन का समय t को शून्य (rending to zero) बनाकर, हमें तत्क्षण धारा i(t) मिलती है :
i
(
t
)
=
d
Q
d
t
{\displaystyle i(t)={\frac {dQ}{dt}}}
I = Q / t (यदि धारा समय के साथ अपरिवर्ती हो)
विद्युत धारा की SI इकाई एम्पीयर है। परिपथों की विद्युत धारा मापने के लिए जिस यंत्र का उपयोग करते हैं उसे एमीटर कहते हैं।
एम्पीयर की परिभाषा: किसी विद्युत परिपथ में 1 कूलॉम आवेश 1 सेकण्ड में प्रवाहित होता है तो उस परिपथ में विद्युत धारा का मान 1 एम्पीयर होता है।
उदाहरण
किसी तार में 10 सेकण्ड में 50 कूलॉम आवेश प्रवाहित होता है तो उस तार में प्रवाहित विद्युत धारा का मान 50 कूलॉम / 10 सेकण्ड = 5 एम्पीयर
एक धात्विक तार विद्युत चालन हेतु अनेक तारों में बंटा हुआ तांबे का तार
धारा घनत्व
इकाई क्षेत्रफल से प्रवाहित होने वाली धारा की मात्रा को धारा घनत्व (करेंट डेन्सिटी) कहते हैं। इससे J से प्रदर्शित करते हैं।
यदि किसी चालक से I धारा प्रवाहित हो रही है और धारा के प्रवाह के लम्बवत उस चालक का क्षेत्रफल A हो तो,
धारा घनत्व
J
=
I
A
{\displaystyle J={\frac {I}{A}}}
इसकी इकाई एम्पीयर / वर्ग मीटर होती है।
यहाँ यह मान लिया गया है कि धारा घनत्व, चालक के पूरे अनुप्रस्थ क्षेत्रफल पर एक समान है। किन्तु अधिकांश स्थितियों में ऐसा नहीं होता है। उदाहरण के लिये जब ही चालक से बहुत अधिक आवृति की प्रत्यावर्ती धारा (जैसे १ मेगा हर्ट्स की प्रत्यावर्ती धारा) प्रवाहित होती है तो उसके बाहरी सतक के पास धारा घनत्व अधिक होता है तथा ज्यों-ज्यों सतह से भीतर केन्द्र की ओर जाते हैं, धारा घनत्व कम होता जाता है। इसी कारण अधिक आवृति की धारा के लिये मोटे चालक बनाने के बजाय बहुत ही कम मोटाइ के तार बनाये जाते हैं। इससे तार में नम्यता (फ्लेक्सिबिलिटी) भी आती है।
ओम का नियम
ओम के नियम के अनुसार, एक आदर्श प्रतिरोधक में प्रवाहित धारा, विभवान्तर के समानुपाती होती है। दूसरे शब्दों में,
I
=
V
R
{\displaystyle I={\frac {V}{R}}}
जहाँ
I धारा, (एम्पीयर में)
V विभवांतर, (वोल्ट में)
R प्रतिरोध, (ओह्म में)
है।
परम्परागत धारा
विद्युत धारा की दिशा : परम्परागत रूप से धनात्मक आवेश को प्रवाह की दिशा में माना जाता है। अतः इलेक्ट्रानों के प्रवाह की दिशा के विपरीत दिशा ही धारा की दिशा है।
धारा के उदाहरण
प्राकृतिक उदाहरण हैं आकाशीय विद्युत या तड़ित (दामिनी) एवं सौर वायु, जो उत्तरीय ध्रुवप्रभा एवं दक्षिणीय ध्रुवप्रभा का कि स्रोत है। धारा का मानवनिर्मित रूप है- धात्वक चालकों में आवेशित इलेक्ट्रॉन का प्रवाह, जैसे शिरोपरि विद्युत प्रसारण तार लम्बे दूरी हेतु, एवं छोटे विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में विद्युत तार। बैटरी के अंदर भी इलैक्ट्रॉन का प्रवाह होता है।vvvv
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