Colocynth Hindi Poetry | कोलोकिंथिस | मरोड़ का संगीत
Автор: Dr Anarul Hoque
Загружено: 2025-09-14
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कोलोकिंथिस – मरोड़ का संगीत
पेट में मरोड़, जैसे आँधी चलती,
दर्द का तूफ़ान, हर नस में जलती।
दबाव से राहत, यही है निशानी,
कोलोकिंथिस देता है जीवन की कहानी।
शरीर दुबला, चेहरा पीला,
क्रोध से भरा, मन कभी ना सीला।
स्वभाव में चिड़चिड़ापन, दुख में मौन,
छोटी सी बात पर, उठता है तूफ़ान।
खाने में पसंद गरमाहट वाली चीज़ें,
तेल मसाले पर बढ़तीं तकलीफ़ें।
मीठा नहीं भाता, पर खट्टा प्रिय,
गर्मियों से डर, ठंडी हवा प्रिय।
पसीना कम, पर चिपचिपा होता,
प्यास भी मध्यम, मन अक्सर रोता।
अजीब सी आदत—क्रोध में रोना,
शांत करने पर भी मन ना होना।
डायथेसिस है न्यूरोजेनिक स्वरूप,
तंत्रिका की पीड़ा, देता है रूप।
सोरिक मियाज़्म की गहरी छाया,
पर कभी-कभी सायकोटिक रंग भी आया।
हर दर्द में झुक कर बैठना चाहें,
घुटनों को पेट से लगा कर राहत पाएं।
संगीत में दर्द का बनता है गीत,
कोलोकिंथिस लाता है सुकून असीमित।
मगरहाट की गलियों में छोटा सा स्थान,
जहाँ मिलता है उपचार, प्रेम समान।
थोड़े से पैसों में सेवा महान,
दर्द के रोगी पाते जीवन नया दान।
कोलोकिंथिस यहाँ एक दीपक बने,
दर्द से तड़पते मन को थामे तले।
करुणा और चिकित्सा का सुंदर मेल,
क्लिनिक की गली में चलता ये खेल।
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