⚖️ “क्रूरता साबित करने के लिए आरोप स्पष्ट और ठोस होने चाहिए।” –🧑⚖️ सुप्रीम कोर्ट🧑⚖️
Автор: LAW POINT
Загружено: 2025-10-01
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सुप्रीम कोर्ट का आदेश – धारा 498-A IPC और ‘क्रूरता’
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498-A महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा और दहेज से संबंधित अत्याचार को रोकने के लिए बनाई गई है। इसमें पति या उसके परिवार के सदस्यों के द्वारा महिला पर मानसिक या शारीरिक क्रूरता करने पर सजा का प्रावधान है।
हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में स्पष्ट किया है कि हर अस्पष्ट या सामान्य शिकायत पर इस धाराओं के तहत केस नहीं चलाया जा सकता।
1. सुस्पष्ट और ठोस आरोप आवश्यक:
कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ धारा 498-A के तहत कार्रवाई करने के लिए स्पष्ट और ठोस तथ्य/आरोप होना अनिवार्य है।
केवल सामान्य कथन जैसे “मुझ पर मानसिक और शारीरिक क्रूरता हुई” बिना किसी ठोस विवरण के पर्याप्त नहीं हैं।
2. अस्पष्ट आरोपों पर मामला रद्द:
यदि आरोप असंदर्भित, संक्षिप्त या सामान्य हैं और उन्हें प्रमाणित करने का कोई ठोस आधार नहीं है, तो अदालत उन पर केस नहीं चलाएगी।
इस मामले में, ससुराल पक्ष के खिलाफ कुल आरोप अस्पष्ट पाए गए, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने मामला रद्द कर दिया।
3. न्यायिक संतुलन:
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि धारा 498-A का दुरुपयोग रोकने के लिए सुस्पष्ट आरोपों की जरूरत है।
इससे यह सुनिश्चित होता है कि केवल वास्तविक पीड़ितों की शिकायतों पर ही कार्रवाई हो।
4. सुधार का संकेत:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय अदालतों को यह दिशा देता है कि केस दर्ज करते समय आरोपों की स्पष्टता और साक्ष्यों पर ध्यान देना जरूरी है।
यह फैसले फर्जी या आधारहीन शिकायतों के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 498-A IPC में क्रूरता साबित करने के लिए ठोस और सुस्पष्ट आरोप होने चाहिए, और केवल अस्पष्ट या सामान्य आरोपों पर मामला नहीं चल सकता। इससे कानून का दुरुपयोग रोकने और वास्तविक पीड़ितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
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