Zero budget natural farming । कैसे होती जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग? । जीरो बजट kheti की जानकारी।
Автор: Mobile Rapat
Загружено: 2021-12-15
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खेती मौजूदा दौर में एक ऐसा व्यवसाय बन गयी है जहां पर लागत बढ़ती जा रही है. नयी तकनीकों का इस्तेमाल करने के लिए महंगी मशीने, महंगे खाद और महंगी बीज ने खेती की लागत को बढ़ा दिया है. ऐसे दौर में जीरो बजट फार्मिंग उन किसानों के लिए वरदान की तरह है जिनके पास खेती के लिए पूंजी का आभाव होता है. पर अगर जीरो बजट प्राकृतिक खेती की जाय तो निश्चित ही किसानों की उत्पादन लागत कम होगी और कम लागत में अधिक पैदावार मिलेगी साथ ही उपज की अच्छी गुणवत्ता होने के कारण उसके दाम भी बाजार में अच्छे मिलेंगे.
जीरो बजट फार्मिंग यानी प्राकृतिक खेती की
खेती की नयी तकनीक के साथ किसान अपने खेत में रासायनिक खाद का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं. जिससे किसान की उपज में वृद्धि के साथ साथ उत्पादन लागतमें भी वृद्धि हो रही है, पर किसानों को उनके उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है, इसके कारण यह घाटे का सौदा बनती जा रही है. इसके साथ ही किसानों के खेत की उर्वरता की भी कमी हो रही है, मिट्टी भी बंजर होती जा रही है.
क्या है जीरो बजट फार्मिंग
जीरो बजट प्राकृतिक खेती करने का एक तरीका है जिसमें बिना किसी लागत के खेती की जाती है. कुल मिलाकर कहें तो यह पूरी तरह से प्राकृतिक खेती है. जीरो बजट प्राकृतिक खेती बाहर से किसी भी उत्पाद का कृषि में निवेश को खारिज करता है. जीरो बजट प्राकृतिक खेती में देशी गाय के गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग करते हैं. इस विधि से 30 एकड़ जमीन पर खेती के लिए मात्र 1 देशी गाय के गोबर और गोमूत्र की आवश्यकता होती है.
देसी प्रजाति के गोवंश की होगी सुरक्षा
जीरो बजट फार्मिंग में गौपालन का भी विशेष महत्व है. क्योंकि देशी प्रजाति के गौवंश के गोबर तथा गोमूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत, जामन बीजामृत बनाया जाता है. इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक ‘गतिविधियों का विस्तार होता है. जीवामृत का उपयोग सिंचाई के साथ या एक से दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है. जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है.
देसी बीज का होता है इस्तेमाल
जीरो बजट प्राकृतिक खेती में हाइब्रिड बीज का उपयोग नहीं किया जाता है. इसके स्थान पर पारस्परिक देशी उन्नतशील प्रजातियों का प्रयोग किया जाता है. इस विधि से खेती करने से किसान को बाजार से खाद एवं उर्वरक, कीटनाशक तथा बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है. जिससे उत्पादन की लागत शून्य रहती है. एकल कृषि पद्धति को छोड़कर बहुफसली की खेती करते हैं. यानि एक बार में एक फसल न उगाकर उसके साथ कई फसल उगाते हैं. जीरो बजट प्राकृतिक खेती को करने के लिये 4 तकनीकों का प्रयोग खेती करने के दौरान किया जाता है.
कहां होती है जीरो बजट फार्मिंग
आन्ध्रप्रदेश ऐसा पहला राज्य है जिसने जीरो बजट खेती को पूरी तरह से अपना लिया है. साल 2024 तक राज्य सरकार ने सभी गावों तक जीरो बजट फार्मिंग को पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. प्रदेश की सरकार ने साल 2015 में जीरो बजट प्राकृतिक खेती को पायलट प्रोजक्ट के तौर पर कुछ गांव में प्रयोग किया था. आज यहां के 5 लाख किसान जीरो बजट खेती कर रहे हैं. इसके अलावा में हिमांचल प्रदेश सरकार ने जीरो बजट प्राकृतिक खेती को अपने राज्य में बढ़ावा देने के लिए एक परियोजना शुरु की है.
जीरो बजट प्राकृतिक खेती के फायदे
जीरो बजट खेती में किसानों को आर्थिक लाभ होता है, उन्हें खाद और बीज खरीदने के लिए पैसे नहीं खर्च करने पड़ते हैं. साथ ही यह खेत की मिट्टी के लिए फायदेमंद होता है क्योंकि इसमे रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं होता है. फसलों की पैदावार अच्छी होती है. इसमें लागत कम आती है पर मुनाफा ज्यादा होता है.
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