श्रीमद् भागवत गीता अध्याय पांच श्लोक १८ ओर १९
Автор: Education for all
Загружено: 2025-12-02
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श्रीमद् भागवत गीता अध्याय पांच श्लोक १८ ओर १९ #गीताश्लोक #learningmotivation #education
श्लोक १८
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि
श्रुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥
अर्थात : विनम्र साधुपुरुष अपने वास्तविक ज्ञान के कारण एक विद्वान् तथा विनीत ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता तथा चाण्डाल को समान दृष्टि (समभाव) से देखते हैं।
श्लोक १९
इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥
अर्थात : जिनके मन एकत्व तथा समता में स्थित हैं उन्होंने जन्म तथा मृत्यु के बन्धनों को पहले ही जीत लिया है। वे ब्रह्म के समान निर्दोष हैं और सदा ब्रह्म में ही स्थित रहते हैं।
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