श्रीमद्भगवद्गीता पहला अध्याय अर्जुनविषादयोग || Chapter 1 Verse 1 - 47 || Shrimad Bhagavad Gita ||
Автор: Rubal Solutions
Загружено: 2024-01-04
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अध्याय-एक: अर्जुन विषाद योग
युद्ध के परिणाम पर शोक प्रकट करना
भगवद्गीता का उपदेश एक ही वंश के दो परिवारों के चचेरे भाइयों कौरव और पाण्डवों के मध्य हुए महाभारत के युद्ध की रणभूमि पर दिया गया। इस पुस्तक के परिचय से संबंधित प्रारम्भिक पृष्ठों में उल्लिखित 'गीता का परिवेश' खण्ड में उन घटनाओं का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है जिनके कारण यह महायुद्ध हुआ।
भगवद्गीता का प्रकटीकरण राजा धृतराष्ट्र और उसके मंत्री संजय के बीच हुए वार्तालाप से आरम्भ होता है। चूंकि धृतराष्ट्र नेत्रहीन था इसलिए वह व्यक्तिगत रूप से युद्ध में उपस्थित नहीं हो सका। अत: संजय उसे युद्धभूमि पर घट रही घटनाओं का पूर्ण सजीव विवरण सुना रहा था। संजय महाभारत के प्रख्यात रचयिता वेदव्यास का शिष्य था। ऋषि वेदव्यास ऐसी चमत्कारिक शक्ति से संपन्न थे जिससे वह दूर-दूर तक घट रही घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप से देखने में समर्थ थे। अपने गुरु की अनुकंपा से संजय ने भी दूरदृष्टि की दिव्य चमत्कारिक शक्ति प्राप्त की थी। इस प्रकार से वह युद्ध भूमि में घटित सभी घटनाओं को दूर से देख सका।
Bhagavad Gita 1.1
धृतराष्ट्र ने कहाः हे संजय! कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि पर युद्ध करने की इच्छा से एकत्रित होने के पश्चात, मेरे और पाण्डु पुत्रों ने क्या किया?
Bhagavad Gita 1.2
संजय ने कहाः हे राजन्! पाण्डवों की सेना की व्यूहरचना का अवलोकन कर राजा दुर्योधन ने अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर इस प्रकार के शब्द कहे।
Bhagavad Gita 1.3
दुर्योधन ने कहाः पूज्य आचार्य! पाण्डु पुत्रों की विशाल सेना का अवलोकन करें, जिसे आपके द्वारा प्रशिक्षित बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने कुशलतापूर्वक युद्ध करने के लिए सुव्यवस्थित किया है।
Bhagavad Gita 1.4 – 1.6
यहाँ इस सेना में भीम और अर्जुन के समान बलशाली युद्ध करने वाले महारथी युयुधान, विराट और द्रुपद जैसे अनेक शूरवीर धनुर्धर हैं। यहाँ पर इनके साथ धृष्टकेतु, चेकितान काशी के पराक्रमी राजा कांशिराज, पुरूजित, कुन्तीभोज और शैव्य सभी महान सेना नायक हैं। इनकी सेना में पराक्रमी युधमन्यु, शूरवीर, उत्तमौजा, सुभद्रा और द्रोपदी के पुत्र भी हैं जो सभी निश्चय ही महाशक्तिशाली योद्धा हैं।
Bhagavad Gita 1.7
हे ब्राह्मण श्रेष्ठ! हमारे पक्ष की ओर के उन सेना नायकों के संबंध में भी सुनिए, जो सेना को संचालित करने में विशेष रूप से निपुण हैं। अब मैं आपके समक्ष उनका वर्णन करता हूँ।
Bhagavad Gita 1.8
इस सेना में सदा विजयी रहने वाले आपके समान भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण तथा सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा आदि महा पराक्रमी योद्धा हैं जो युद्ध में सदा विजेता रहे हैं।
Bhagavad Gita 1.9
यहाँ हमारे पक्ष में अन्य अनेक महायोद्धा भी हैं जो मेरे लिए अपने जीवन का बलिदान करने के लिए तत्पर हैं। वे युद्ध कौशल में पूर्णतया निपुण और विविध प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित हैं।
Bhagavad Gita 1.10
हमारी शक्ति असीमित है और हम सब महान सेना नायक भीष्म पितामह के नेतृत्व में पूरी तरह से संरक्षित हैं जबकि पाण्डवों की सेना की शक्ति भीम द्वारा भलीभाँति रक्षित होने के पश्चात भी सीमित है।
Bhagavad Gita 1.11
अतः मैं कौरव सेना के सभी योद्धागणों से भी आग्रह करता हूँ कि सब अपने मोर्चे पर अडिग रहते हुए भीष्म पितामह की पूरी सहायता करें।
Bhagavad Gita 1.12
तत्पश्चात कुरूवंश के वयोवृद्ध परम यशस्वी महायोद्धा भीष्म पितामह ने सिंह-गर्जना जैसी ध्वनि करने वाले अपने शंख को उच्च स्वर से बजाया जिसे सुनकर दुर्योधन हर्षित हुआ।
Bhagavad Gita 1.13
इसके पश्चात शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सींग अचानक एक साथ बजने लगे। उनका समवेत स्वर अत्यन्त भयंकर था।
Bhagavad Gita 1.14
तत्पश्चात पाण्डवों की सेना के बीच श्वेत अश्वों द्वारा खींचे जाने वाले भव्य रथ पर आसीन माधव और अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये।
Bhagavad Gita 1.15
ऋषीकेश भगवान् कृष्ण ने अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अतिभोजी एवं अति दुष्कर कार्य करने वाले भीम ने पौण्डू नामक भीषण शंख बजाया।
Bhagavad Gita 1.16 – 1.18
हे पृथ्वीपति राजन्! राजा युधिष्ठिर ने अपना अनन्त विजय नाम का शंख बजाया तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक नामक शंख बजाये। श्रेष्ठ धनुर्धर काशीराज, महा योद्धा शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी के पांच पुत्रों तथा सुभद्रा के महाबलशाली पुत्र वीर अभिमन्यु आदि सबने अपने-अपने अलग-अलग शंख बजाये।
Bhagavad Gita 1.19
हे धृतराष्ट्र! इन शंखों से उत्पन्न ध्वनि द्वारा आकाश और धरती के बीच हुई गर्जना ने आपके पुत्रों के हृदयों को विदीर्ण कर दिया।
Bhagavad Gita 1.20
उस समय हनुमान के चिह्न की ध्वजा लगे रथ पर आसीन पाण्डु पुत्र अर्जुन अपना धनुष उठा कर बाण चलाने के लिए उद्यत दिखाई दिया। हे राजन! आपके पुत्रों को अपने विरूद्ध व्यूह रचना में खड़े देख कर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से यह वचन कहे।
Bhagavad Gita 1.21 – 1.22
अर्जुन ने कहा! हे अच्युत! मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच खड़ा करने की कृपा करें ताकि मैं यहाँ एकत्रित युद्ध करने की इच्छा रखने वाले योद्धाओं जिनके साथ मुझे इस महासंग्राम में युद्ध करना है, को देख सकूं।
Bhagavad Gita 1.23
मैं उन लोगों को देखने का इच्छुक हूँ जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुश्चरित्र पुत्रों को प्रसन्न करने की इच्छा से युद्ध लड़ने के लिए एकत्रित हुए हैं।
Bhagavad Gita 1.24
संजय ने कहा-हे भरतवंशी धृतराष्ट्र! निद्रा पर विजय पाने वाले अर्जुन द्वारा इस प्रकार के वचन बोले जाने पर तब भगवान श्रीकृष्ण ने उस भव्य रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले जाकर खड़ा कर दिया।
Bhagavad Gita 1.25
भीष्म, द्रोण तथा अन्य सभी राजाओं की उपस्थिति में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि हे पार्थ! यहाँ पर एकत्रित समस्त कुरुओं को देखो।
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