First Muslim Invasion || Story Of Raja Dhair Vs Mohd Bin Qasim-The Last Hindu Kingdom Of Sindh
Автор: Right To Ask
Загружено: 2025-11-11
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Frist Muslim Invasion || Raja Dhair Vs Mohd
यह एक प्रसिद्ध और नाटकीय ऐतिहासिक कहानी है, हालाँकि यह चचनामा (सिंध के एक प्रारंभिक इतिहास) जैसे वृत्तांतों पर आधारित है और आधुनिक इतिहासकारों द्वारा इस पर बहस की जाती है।
यह कहानी सिंध के अंतिम हिंदू शासक राजा दाहिर और उनकी दो बेटियों, सूर्यदेवी और परिमलदेवी के इर्द-गिर्द घूमती है।
यहाँ उनकी बहादुरी और प्रतिशोध के बारे में पारंपरिक कथा का सारांश दिया गया है:
1. सिंध का पतन और बेटियों का बंदी बनना
राजा दाहिर ने 8वीं शताब्दी ई. तक सिंध (आधुनिक पाकिस्तान) पर शासन किया। उनके राज्य पर उमय्यद खलीफा की अरब सेना ने आक्रमण किया, जिसका नेतृत्व युवा सेनापति मुहम्मद बिन कासिम ने 711 ई. में शुरू किया था।
राजा दाहिर ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी लेकिन अंततः अरोर के युद्ध में हार गए और मारे गए।
विजय के बाद, उनकी दो बेटियाँ, सूर्यदेवी और परिमलदेवी, बंदी बना ली गईं। मुहम्मद बिन कासिम ने सुंदर राजकुमारियों को दमिश्क में खलीफा वलीद इब्न अब्द अल-मलिक (या कुछ संस्करणों के अनुसार उनके उत्तराधिकारी, खलीफा सुलेमान इब्न अब्द अल-मलिक) को उपहार के रूप में भेजने का फैसला किया।
2. प्रतिशोध का कार्य
खलीफा के दरबार में पहुँचने पर, खलीफा उनके सौंदर्य से बहुत मोहित हुए। जब उन्होंने बड़ी बहन, सूर्यदेवी, को अपने हरम में लेने का इरादा किया, तो उसने बात की।
सूर्यदेवी ने घोषणा की कि वे अब खलीफा के बिस्तर के योग्य नहीं हैं क्योंकि मुहम्मद बिन कासिम ने उन्हें खलीफा के निजी दासियों के रूप में भेजने से पहले ही उनके साथ दुर्व्यवहार किया था।
खलीफा, इस गंभीर अपमान से क्रोधित हो गए—यह विचार कि उनके अधीनस्थ ने उन्हें उपहार में भेजी गई वस्तु पर दावा करने की हिम्मत की—और वे भयानक रूप से भड़क उठे।
3. मुहम्मद बिन कासिम का वध
दावे की जाँच किए बिना, क्रोधित खलीफा ने तुरंत मुहम्मद बिन कासिम को मार डालने का आदेश दिया। पारंपरिक (और अक्सर भीषण) आदेश यह था कि सेनापति को कच्चे चमड़े में ज़िंदा सिल दिया जाए और एक बक्से या संदूक में राजधानी वापस भेजा जाए।
मुहम्मद बिन कासिम ने बिना किसी सवाल के खलीफा के आदेश का पालन किया, लेकिन चमड़े के संकुचन या दम घुटने के कारण यात्रा के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई।
4. स्वीकारोक्ति और अंतिम भाग्य
जब मुहम्मद बिन कासिम के शव वाला संदूक खलीफा के सामने लाया गया, तो उन्होंने राजकुमारियों को अपने प्रतिशोध और अपने लोगों की आज्ञाकारिता का यह दृश्य देखने के लिए बुलाया।
यह इसी क्षण था जब बहादुर राजकुमारियों में से एक ने स्वीकार किया। उसने कहा कि मुहम्मद बिन कासिम ने उन्हें कभी नहीं छुआ था और उनके साथ एक बेटे या भाई जैसा व्यवहार किया था।
उसने गर्व से बताया कि उन्होंने अपने पिता के राज्य के विनाश और अपने परिवार की मृत्यु का बदला लेने के लिए यह कहानी गढ़ी थी। उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग करके उस व्यक्ति को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया जिसने उनके जीवन को नष्ट कर दिया था।
खलीफा को बहुत गुस्सा आया, यह महसूस करते हुए कि उन्होंने एक झूठ के आधार पर अपने सबसे सफल सेनापतियों में से एक को मार डाला था। अपने अंतिम क्रोध में, उन्होंने राजकुमारियों को यातना देकर मारने का आदेश दिया या, कुछ वृत्तांतों के अनुसार, उन्हें घोड़ों की पूंछ से बाँधकर शहर में घसीटा गया। इस प्रकार, राजा दाहिर की बहादुर बेटियों ने अपना बदला पूरा किया लेकिन अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।
यह कहानी एक पराजित राजा की बेटियों द्वारा एक शक्तिशाली विजेता के खिलाफ प्रतिरोध, देशभक्ति और प्रतिशोध के एक अंतिम कार्य के रूप में मनाई जाती है।
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