1813 का राजपत्र अधिनियम भारत में ब्रिटिश शासन और शिक्षा
Автор: Lakshya Marg Academy
Загружено: 2025-09-02
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1813 का राजपत्र कम्पनी के एकाधिकार को समाप्त करने, ईसाई मिशनरियों द्वारा भारत में धार्मिक सुविधाओं की मांग, लॉर्ड वेलेजली की भारत में आक्रामक नीति तथा कम्पनी की सोचनीय आर्थिक स्थिति के कारण 1813 का चार्टर अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया। इसे प्रमुख प्रावधान निम्न थेः
(i) कम्पनी का भारतीय व्यापार का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया, यद्यपि उसका चीन से व्यापार तथा चाय के व्यापार पर एकाधिकार बना रहा।
(ii) ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुमति दी गयी।
(iii) भारतीयों की शिक्षा के लिए सरकार को प्रतिवर्ष 1 लाख रुपये खर्च करने का निर्देश दिया गया।
(iv) कम्पनी को अगले 20 वर्षों के लिए भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर नियंत्रण का अधिकार दे दिया गया।
(v) नियंत्रण बोर्ड की शक्ति को परिभाषित किया गया तथा उसका विस्तार भी कर दिया गया।
1813 का चार्टर अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा पारित एक महत्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज़ था, जिसने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन और व्यापार की दिशा को प्रभावित किया। इस अधिनियम ने कंपनी के भारत में व्यापार के एकाधिकार को समाप्त करते हुए अन्य ब्रिटिश व्यापारियों को भारतीय बाजारों में प्रवेश की अनुमति दी, सिवाय चाय और चीनी व्यापार के। यह अधिनियम ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में शासन के संवैधानिक नियंत्रण की शुरुआत माना जाता है।
चार्टर अधिनियम ने भारत में शिक्षा और धर्म प्रचार को बढ़ावा देने के लिए भी ठोस प्रावधान किए। इसमें भारत में शिक्षा के विस्तार के लिए प्रति वर्ष एक लाख रुपये की धन राशि आवंटित की गई, जिससे ब्रिटिश सरकार की शैक्षिक नीतियों को मजबूत किया गया। इसके अलावा, इस अधिनियम के तहत ईसाई मिशनरियों को धार्मिक प्रचार की स्वतंत्रता दी गई, जिससे भारतीय समाज में धार्मिक और सामाजिक सुधारों का रास्ता खुला।
यह अधिनियम कंपनी के शासन को अगले 20 वर्षों तक वैधता प्रदान करता रहा, लेकिन इसके साथ ही कंपनी के अधिकारों पर कुछ नियंत्रण भी लगा। 1813 का चार्टर अधिनियम भारतीय प्रशासन में ब्रिटिश आधिपत्य को नई संवैधानिक ऊँचाई प्रदान करता है और यह भारत के आधुनिक शिक्षण संस्थानों की स्थापना की नींव भी माना जाता है।
इस प्रकार, 1813 का चार्टर अधिनियम न केवल वाणिज्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह भारतीय समाज में सामाजिक, शैक्षिक, और धार्मिक बदलावों का प्रारंभिक सूत्रधार भी था, जिसने ब्रिटिश भारत की दिशा स्थायी रूप से बदल दी।
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