देव सोमनाथ मंदिर//वागड़ धरा की प्राचीन धरोहर
Автор: Jyotsna Panchal
Загружено: 2024-01-31
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भारत के मंदिरों की संरचना उनकी एक प्रमुख विशेषता मानी जाती है। हाल ही में ऑपइंडिया की मंदिरों की श्रृंखला में हमने होयसलेश्वर मंदिर के बारे में बताया था, जिसकी संरचना ही कुछ ऐसी थी कि उसके निर्माण में मशीनों के उपयोग की संभावना भी जताई जाती है। राजस्थान के डूँगरपुर में भी एक ऐसा शिव मंदिर स्थित है, जो 108 खम्भों पर टिका हुआ है और जिस पर भूकंप के झटकों का भी कोई असर नहीं होता है। हम बात कर रहे हैं देव सोमनाथ मंदिर की, जिसका नामकरण गाँव और वहाँ स्थित नदी के नाम पर हुआ है।
इतिहास
डूँगरपुर के उत्तर-पूर्व में 20 किमी दूर देव नामक गाँव में सोम नदी के किनारे स्थित होने के कारण ही मंदिर का नाम देव सोमनाथ पड़ा। मंदिर में प्राप्त शिलालेखों से यह जानकारी मिलती है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी के दौरान राजा अमृतपाल के द्वारा कराया गया था। मंदिर में 14वीं शताब्दी के अस्पष्ट शिलालेख भी प्राप्त होते हैं, जिनसे यह संभावना व्यक्त की जाती है कि इस दौरान मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ होगा। वर्तमान में मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है।
मंदिर के गर्भगृह में दो शिवलिंग स्थापित हैं। दोनों ही शिवलिंग स्वयंभू हैं और इनके विषय में कोई भी इतिहास ज्ञात नहीं है। गर्भगृह में इन दो शिवलिंगों के अलावा अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ भी स्थापित की गई हैं, जिनका निर्माण पत्थरों की सहायता से किया गया है।
मंदिर की संरचना
देव सोमनाथ मंदिर के विषय में पुरातत्व विभाग के द्वारा प्रदान की गई जानकारी से यह ज्ञात होता है कि इस मंदिर को मालवा शैली के अनुसार बनाया गया है। योजन आकार में निर्मित इस मंदिर में गर्भगृह, अंतराल और सभा मंडप हैं और साथ ही मंदिर में प्रवेश के लिए 3 द्वार हैं। मंदिर की छत पर भी शानदार नक्काशी की गई है।
यह मंदिर तीन मंजिला है, जो 108 खम्भों पर टिका हुआ है। इन खम्भों का निर्माण चूने और मिट्टी के गारे से हुआ है। मंदिर की खासियत है कि इसे बनाने में उपयोग हुए पत्थरों को इन खम्भों से जोड़ने में किसी भी प्रकार के पदार्थ का उपयोग नहीं किया गया है। बल्कि ये पत्थर आपस में और इन खम्भों के साथ क्लैंप तकनीक के माध्यम से जुड़े हुए हैं। इस तकनीक से जुड़े होने का फायदा यह है कि न तो मंदिर के पत्थर और न ही खम्भों पर भूकंप का कोई असर होता है।
देव सोमनाथ मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण मात्र एक रात में ही हुआ था। साथ ही गर्भगृह में स्थापित दोनों शिवलिंग के विषय में भी यही स्थानीय मान्यता है कि ये दोनों शिवलिंग अपने आप प्रकट हुए थे। जिस प्रकार मंदिर की स्थापत्य कला है, उससे अंदाजा लगाया जाता है कि इसका निर्माण गुजरात के प्रसिद्द सोमपुरा शिल्पकारों ने किया था लेकिन इसके विषय में स्पष्ट साक्ष्यों का अभाव है।
कैसे पहुँचें?
डूँगरपुर पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी हवाईअड्डा उदयपुर में स्थित है, जो मंदिर से लगभग 128 (किलोमीटर) किमी की दूरी पर है। इसके आलावा अहमदाबाद के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से मंदिर की दूरी लगभग 200 किमी है।
डूँगरपुर रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 30 किमी की दूरी पर है, जो देश के लगभग सभी बड़े शहरों से रेलमार्ग के माध्यम से जुड़ा हुआ है। राजस्थान, गुजरात और अन्य उत्तर भारतीय इलाकों से डूँगरपुर सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन बस सेवा का उपयोग करके आसानी से डूँगरपुर पहुँचा जा सकता है।
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