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#1059

Автор: Shri Radhe (Premanand Ji Maharaj)

Загружено: 2025-10-13

Просмотров: 285

Описание: #1059 Ekantik Vartalap | चेतना क्या है? क्या यह साधना से जागृत होती है या पहले से ही रहती है? Premanand Ji Maharaj


चेतना एक जटिल अवधारणा है, जिसके बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। इसे मुख्य रूप से दो तरीकों से देखा जाता है: वैज्ञानिक और आध्यात्मिक। इन दोनों के आधार पर, यह कहा जा सकता है कि चेतना दोनों ही है—यह पहले से मौजूद है और साधना से जागृत भी होती है।
चेतना क्या है?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: विज्ञान में चेतना को जागृत अवस्था में होने, सोचने और अपने आस-पास क्या हो रहा है, यह जानने की स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है। यह मस्तिष्क की गतिविधि का परिणाम मानी जाती है, जो हमारी भावनाओं, विचारों और यादों से जुड़ी है।
दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण: भारतीय दर्शन और वेदों के अनुसार, चेतना केवल मनुष्यों में ही नहीं, बल्कि हर जीवित और निर्जीव वस्तु में व्याप्त है। इसे आत्मा का सार माना जाता है, जो शाश्वत है। चेतना ही वह आधार है, जिसमें सभी अनुभव होते हैं।
क्या चेतना साधना से जागृत होती है या पहले से रहती है?
यह प्रश्न उस दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, जिसे आप मानते हैं।
पहले से मौजूद चेतना
कुछ दार्शनिकों और आध्यात्मिक विचारकों के अनुसार, चेतना पहले से ही मौजूद होती है और यह हमारे अस्तित्व का मूल स्वरूप है।
अखंड चेतना: यह विचार है कि चेतना एक सार्वभौमिक और मूलभूत वास्तविकता है, जो हर जगह मौजूद है। हमारा व्यक्तिगत अस्तित्व उस बड़ी चेतना का ही एक हिस्सा है, जिसके कारण हम 'मैं हूं' का अनुभव करते हैं।
जागृति का उद्देश्य: इस दृष्टिकोण से, आध्यात्मिक जागृति चेतना को पैदा करना नहीं है, बल्कि उस चेतना को पहचानना या उसका अनुभव करना है, जो पहले से ही भीतर मौजूद है। यह उस भ्रम से जागना है, जो हमें अपनी सीमित पहचान में बांधता है।
साधना से जागृत चेतना
साधना का उद्देश्य पहले से मौजूद चेतना के उस स्तर को उजागर करना है, जिसका हमें आमतौर पर अनुभव नहीं होता। साधना इस प्रक्रिया में मदद करती है।
उच्च चेतना: ध्यान (मेडिटेशन) और योग जैसी साधनाएं हमारे मन को शांत करती हैं और उच्च चेतना या जागरूकता की अवस्था में जाने में मदद करती हैं।
आध्यात्मिक जागृति: साधना से हमारी आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ती है। इससे हमें अपनी सीमित धारणाओं से ऊपर उठकर एक व्यापक विश्वदृष्टि मिलती है।
अहं का विलय: मंत्रोच्चार और योग जैसे अभ्यास मन और शरीर को शुद्ध करते हैं, जिससे अहंकार का विघटन होता है और व्यक्ति सार्वभौमिक चेतना के साथ जुड़ पाता है।
निष्कर्ष
सरल शब्दों में, चेतना पहले से ही हमारे भीतर मौजूद है, लेकिन यह अक्सर हमारे विचारों, भावनाओं और बाहरी दुनिया की उलझनों से ढकी रहती है। साधना एक ऐसा साधन है, जो इस आवरण को हटाकर हमें अपनी मूल, शुद्ध चेतना का अनुभव करने में मदद करता है। यह चेतना को पैदा नहीं करती, बल्कि उसे जाग्रत करती है।


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