ध्यान विधि | भीतर की यात्रा | भगवान रजनीश
Автор: Rohan
Загружено: 2025-11-09
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और तीसरी अंतिम बात, जब भी मौका मिल जाए तो होशपूर्वक समस्त इंद्रियों के द्वार बंद करके भीतर देखें।
चौबीस घंटे हम बाहर देखते हैं। जब भीतर देखने का मौका आता है तब हम सो गये होते हैं--तब भीतर देखना नहीं हो पाता। या तो बाहर देखते हैं या नहीं देखते हैं, दो काम हैं हमारी जिंदगी में। दिन भर बाहर देखते हैं, रात में नहीं देखते। या कुछ लोग देखते हैं तो स्वप्न देखते हैं, वह भी बाहर देखना है। वह भी भीतर देखना नहीं है। थोड़ी देर होशपूर्वक चौबीस घंटे में आंख बंद कर के भीतर देखें। क्या मतलब भीतर देखने का? आंख बंद करें और देखने की कोशिश करें। कुछ और मतलब नहीं है। आंख बंद कर लें और देखने की कोशिश करें। सिर्फ कुछ मत करें, आंख बंद कर लें और देखने की कोशिश करें। आंख खोलकर तो हम देख लेते हैं, कोशिश नहीं करनी पड़ती, चीजें दिखाई पड़ जाती हैं। आंख बंद करके कुछ भी दिखाई नहीं पड़ेगा। अंधेरा दिखाई पड़ेगा तो अंधेरे को ही देखें। बस देखने की कोशिश करें जो भी दिखाई पड़े। हो सकता है कोई चित्र दिखाई पड़े, उसे देखने की कोशिश करें; कोई सपना दिखाई पड़े, उसे देखने की कोशिश करें। भीतर जो भी होता है, इंद्रियों को बंद करके देखने की...।
पहले आंख से शुरू करें, क्योंकि आंख हमारी सबसे महत्वपूर्ण इंद्रिय बन गयी है। फिर भीतर सुनने की कोशिश करें, जो भी सुनाई पड़े उसे सुनने की कोशिश करें। फिर भीतर सूंघने की कोशिश करें, फिर भीतर स्वाद लेने की कोशिश करें। इंद्रियों से जो-जो बाहर किया है, वह-वह भीतर करने की कोशिश करें। और आप दंग हो जायेंगे। भीतर के अपने नाद हैं। भीतर की अपनी ध्वनियां हैं। भीतर के अपने रंग हैं। भीतर के अपने स्वाद हैं। भीतर की अपनी सुगंधें हैं। और धीरे-धीरे वह पैदा होनी शुरू हो जायेंगी। और जिस दिन आपके भीतर का रंग आपको दिखाई पड़ेगा, उस दिन बाहर के रंग एकदम अनरिअल मालूम पड़ने लगेंगे। फिर बाहर जाने की इच्छा बंद होने लगेगी। जिस दिन भीतर का संगीत सुनाई पड़ेगा, उस दिन बाहर का संगीत एकदम बेमानी हो जायेगा, शोरगुल मालूम पड़ेगा। जिस दिन भीतर की सुगंध का अनुभव होगा, उस दिन फ्रेंच बाजारों में बनी सारी परफ्यूमें बिलकुल बेकार मालूम पड़ेंगी। और जिस दिन भीतर के सौंदर्य का बोध होगा, उस दिन बाहर कोई सौंदर्य न रह जायेगा।
तो तीसरा सूत्र, जब भी मौका मिले तो कुछ भीतर करने की कोशिश करें। चौबीस घंटे बाहर ही बाहर न करते रहें। क्योंकि जहां हम करते हैं, ऊर्जा उसी तरफ बहनी शुरू हो जाती है। अगर हम बाहर कुछ करते हैं तो बाहर बहती है। अगर हम भीतर कुछ करते हैं तो भीतर बहती है। जहां काम है, ऊर्जा को वहीं जाना पड़ता है। जहां काम है, ऊर्जा उसी ओर दौड़ पड़ती है। तो भीतर थोड़ा काम करें ताकि ऊर्जा भीतर दौड़ने लगे।
ये तीन सूत्र आप पूरे करें और आप हैरान हो जायेंगे कि जिंदगी से काम चला गया, अकाम उपलब्ध हुआ। ऊर्जा भीतर इकट्ठी होगी, ऊपर उठेगी, अंतस के और द्वार खुलेंगे। अंतस के दूसरे चक्र सक्रिय होंगे और भीतर के रस और भीतर के अमृत झरने लगेंगे। अकाम अंततः अमृत बन जाता है और काम अंततः मृत्यु बन जाता है। काम है मृत्यु की खोज। अकाम है अमृत की खोज।
कल पांचवें और अंतिम सूत्र अप्रमाद पर आप से बात करूंगा। अप्रमाद का अर्थ है: अमूर्च्छा। अप्रमाद का अर्थ है: अवेयरनेस। चार दिन जो हमने कहा है, कल उस साधन की हम बात करेंगे जिससे चार दिन हमने जो कहा है वह उपलब्ध हो सकता है। कल साधन की बात है।
क्या करें कि अहिंसा आ जाये? क्या करें कि अचौर्य आ जाये? क्या करें कि अपरिग्रह आ जाये? क्या करें कि अकाम आ जाये? कौन-सा है मार्ग? कौन-सा है द्वार? कौन-सा है सूत्र?
ये थोड़ी-सी बातें इतने प्रेम और शांति से आपने सुनीं, उससे मैं बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे प्रभु को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार करें।
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