🔥🔥Shivaji Aur Aurangzeb Ki Dushmani Ki Puri Kahani 1 Minute Mein!”🔥🔥
Автор: Bihari Short
Загружено: 2025-11-29
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Chhatrapati Shivaji aur Aurangzeb ki Ladai – Pura Vritant
भारत के इतिहास में सबसे प्रमुख संघर्षों में से एक मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल सम्राट औरंगज़ेब के बीच हुआ। यह लड़ाई सिर्फ दो व्यक्तियों की नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं—स्वराज vs साम्राज्यवाद—की लड़ाई थी।
1. संघर्ष की शुरुआत
शिवाजी महाराज ने दक्कन में स्वतंत्र हिंदवी स्वराज स्थापित करने का संकल्प लिया था। दूसरी तरफ औरंगज़ेब चाहता था कि पूरा भारत मुगलों के अधीन हो।
शिवाजी ने 1646 से कई किलों पर कब्ज़ा करके अपना विस्तार शुरू किया।
मुगलों को लगा कि दक्कन में एक नया शक्तिशाली राजा खड़ा हो रहा है।
यहीं से टकराव की नींव पड़ी।
2. शाहिस्तेखान और शिवाजी महाराज (1660–1663)
औरंगज़ेब ने शिवाजी को हराने के लिए अपने चाचा शाहिस्तेखान को भेजा।
शाहिस्तेखान पुणे के लाल महल में रहने लगा।
1663 में शिवाजी ने लाल महल पर रात का हमला किया।
शाहिस्तेखान की उँगलियाँ कट गईं और वह जान बचाकर भागा।
यह मराठों की बड़ी जीत थी।
3. सूरत पर हमला (1664)
औरंगज़ेब मुगलों की ताकत बढ़ाने के लिए धन का उपयोग करता था। शिवाजी ने उसे कमजोर करने की रणनीति बनाई।
शिवाजी ने 1664 में सूरत के धनवान शहर पर धावा बोला।
यह हमला रणनीतिक था, जिससे मुगलों को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ।
4. पुरंदर की संधि (1665)
औरंगज़ेब ने जयसिंह प्रथम के नेतृत्व में बड़ी सेना भेजी।
शिवाजी को मजबूर होकर पुरंदर की संधि करनी पड़ी।
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शिवाजी ने कुछ किले सौंपे लेकिन मुगल दरबार में शांति हेतु गए।
5. आगरा कांड (1666)
यह संघर्ष का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ है।
शिवाजी को औरंगज़ेब ने आगरा बुलाया।
वहाँ शिवाजी का अपमान किया गया और उन्हें नजरबंद किया गया।
शिवाजी महाराज ने चतुराई से टोकरी में छिपकर आगरा से भागकर सभी को चौंका दिया।
इस घटना के बाद शिवाजी और अधिक शक्तिशाली नेता बनकर उभरे।
6. शिवाजी का पुनः उदय (1667–1674)
आगरा से लौटने के बाद शिवाजी ने अपने राज्य का विस्तार दोगुना कर दिया।
उन्होंने बड़े किले वापस जीते
मराठा नौसेना मजबूत की
औरंगज़ेब की सेना कई बार पराजित हुई
1674 में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ, और वे छत्रपति बने।
7. अंतिम चरण (1674–1680)
औरंगज़ेब लगातार मराठों को दबाने में असफल रहा।
शिवाजी महाराज ने दक्षिण भारत तक अपने प्रभाव को बढ़ाया।
मुगलों से भिड़ने में वे हमेशा रणनीति से विजयी रहे।
1680 में शिवाजी महाराज का देहांत हुआ।
लेकिन लड़ाई यहीं खत्म नहीं हुई।
8. शिवाजी के बाद भी संघर्ष जारी
शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी महाराज ने औरंगज़ेब का मुकाबला जारी रखा।
इस संघर्ष ने मुगलों को आर्थिक और सैन्य रूप से इतना कमजोर कर दिया कि उनका साम्राज्य धीरे–धीरे टूटने लगा।
निष्कर्ष
शिवाजी बनाम औरंगज़ेब की लड़ाई सिर्फ युद्ध नहीं थी—
यह स्वराज और स्वतंत्रता की चाह
बनाम
साम्राज्यवादी शासन
का संघर्ष था।
शिवाजी महाराज की रणनीति, बुद्धिमानी और युद्ध कौशल ने औरंगज़ेब जैसे शक्तिशाली सम्राट को चुनौती दी और इतिहास बदल दिया।
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