70-श्री चैतन्य चरितावली शचीमाता और गौरहरि || Mahaprabhu || Chaitanya charitra || Nimai || katha
Автор: sanatan vaani
Загружено: 2025-06-23
Просмотров: 114
Описание:
श्री चैतन्य चरितावली शचीमाता और गौरहरि || Mahaprabhu || Chaitanya charitra || Nimai || katha
शचीमाता और गौरहरि
बात सुनकर माताके शोकका पारावार नहीं रहा! वह भूलो सी, भटकी-सी, किंकर्तव्यविमूढा-सी होकर चारों ओर देखने लगी। कभी आगे देखती, कभी पीछेको निहारती, कभी आकाशकी ही ओर देखने लगती। मानो माता दिशा-विदिशाओंसे सहायताकी भिक्षा माँग रही है। लोगोंके मुखसे इस बातको सुनकर दुःखिनी माताका धैर्य एकदम जाता रहा। वह विलखतं हुई, रोती हुई, पुत्र-वियोगरूपी दावानलसे झुलसी हुई-सी महाप्रभुके पास पहुँची और बड़ी ही कातरताले साथ कलेजेकी कसकको अपनी मर्माहत वाणीसे प्रकट करती हुई कहने लगी- 'बेटा निमाई! मैं जो कुछ सुन रही हूँ वह सब कहाँतक ठीक है?
पुत्र-वियोगको अशुभ समझनेवाली माताके मुखसे वह दारुण बात स्वयं ही न निकली। उसने गोलमाल तरहसे ही उस बातको पूछा। कुछ अन्यमनस्क भावसे प्रभुने पूछा- 'कौन-सी बात?'
हाय! उस समय माताका हृदय स्थान-स्थानसे फटने लगा। वह अपने मुखसे वह हृदयको हिला देनेवाली बात कैसे कहती ? कड़ा जी करके उसने कहा- 'बेटा! कैसे कहूँ, इस दुःखिनी विधवाके ही भाग्यमें न जाने विधाताने सम्पूर्ण आपत्तियाँ लिख दी हैं क्या? मेरे कलेजेका बड़ा टुकड़ा विश्वरूप घर छोड़कर चला गया और मुझे मर्माहत बनाकर आजतक नहीं लौटा। तेरे पिता बीचमें ही धोखा दे गये। उस भयंकर पति-वियोगरूपी पहाड़ से दुःखको भी मैंने केवल तेरा ही मुख देखकर सहन किया। तेरे कमलके समान खिले हुए मुखको देखकर मैं सभी विपत्तियोंको भूल जाती। मुझे जब कभी दुःख होता तो तुझसे छिपकर रोती। तेरे सामने इसलिये खुलकर नहीं रोती थी कि मेरे रुदनसे तेग चन्द्रमाके समान सुन्दर मुख कहीं म्लान न हो जाय। मैं तेरे मुखपर म्लानता नहीं देख सकती थी! प्र दुःख-दावानलमें जलती हुई इस अनाश्रिता दुःखिनीका तेरा चन्द्रमाके समान शीतल मुख ही एकमात्र उ आश्रय था। उसीकी शीतलतामें मैं अपने तापोंको शान्त कर लेती। अब भक्तोंके मुखसे सुन रही हूँ कि तू भी मुझे धोखा देकर जाना चाहता है। बेटा! क्या यह बात ठीक है?
माताकी ऐसी करुणापूर्ण कातर वाणीको सुनकर प्रभुने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। वे डबडबाई आँखोंसे पृथ्वीकी ओर देखने लगे। उनके चेहरेपर म्लानता आ गयी। वे भावी वियोगजन्य दुःखके कारण कुछ विषण्ण-से हो गये।
माताकी अधीरता और भी अधिक बढ़ गयी। उसने भयभीत होकर बड़े ही आर्तस्वरमें पूछा- 'निमाई! बेटा, मैं सत्य-सत्य जानना चाहती हूँ। क्या यह बात ठीक है? चुप रहनेसे
❤️❤️❤️❤️❤️🌹🙏🌹❤️❤️❤️❤️❤️
#chaitnyaprabhu #katha #spirituality
• 69-श्रीचैतन्य चरितावली भक्तवृन्द और गौरहरि...
• 68-श्री चैतन्य चरितावली संन्याससे पूर्व ||...
• 67- श्री चैतन्य चरितावली नवानुराग और गोपी-...
• 66-2 श्रीचैतन्य चरितावली भक्तोंकी लीलाएँ |...
• 66-1 श्रीचैतन्य चरितावली भक्तोंकी लीलाएँ |...
• 65-2 श्री चैतन्य चरितावली काजीकी शरणागति |...
Повторяем попытку...

Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео
-
Информация по загрузке: