रामधुनी | entertainment drama द्रौपदी चीर हरण का क्या कारण था | CG
Автор: jayant sahu
Загружено: 2024-12-12
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महाभारत भारत का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है। जिसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की है। इसमें द्रोपदी के चीर हरण के प्रसंग को अनेक तरह से अनुचित बताया गया है। महाभारत में द्रोपदी के चीर हरण के पीछे कई कारण बताये गये है।
जैसे—
1. द्रौपदी ने स्वयंबर में कर्ण को धनुसधांन करने रोक करने से रोक दी कि'मैं सूतपुत्र से विवाह नही करूंगी'। यह कर्ण का अपमान था।
2. द्रौपदी ने इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा कहकर अपमानित किया था। इसमें द्रोपदी ने मात्र दुर्योधन का ही नही वरन कौरव वशं के बड़े व माननीय तथा राज्य के महाराज धृतराष्ट का भी अपमान था।
3. द्रौपदी को युधिष्ठिर द्वारा जुए में हार जाना।
हस्तिनापुर का राजा दुर्योधन था। जो पांडवों का चचेरा भाई था। दुर्योधन कौरवों में सबसे बड़ा था। कौरव पांडवों से जलते थे। पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठर थे। जो उस समय इंद्रप्रस्थ नगर में राज्य कर रहे थे। कौरवों का मामा शकुनि बहुत चालाक था। उसने दुर्योधन को सलाह दिया की। कौरवों को जुएं के खेल के लिए बुलाये। इस खेल में पांडवों का सारा राज्य अपने कब्जे में कर ले। दुर्योधन द्वारा बुलाये जाने पर पांडव तैयार हो गए। और खेल को खेलने के लिए आ गए। एक सभा का आयोजन हुआ जिसमें धृतराष्ट्र, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और महात्मा विदुर जैसे महान लोग भी सम्मिलित हुए। इसके पश्चात चालाक शकुनि ने अपने छल के द्वारा पांडवों को हराना आरम्भ किया। सर्वप्रथम पांडव अपना राज्य को हार गए। इसके बाद युधिष्ठिर ने अपने आप और अपने चारों भाइयों को दांव पर लगा दिया और हार गए। अब पांडवों के पास दाव पर लगाने के लिए कुछ नहीं था। द्रौपदी को इस खेल में दांव पर लगाकर पुनः फिर हार गए। दुर्योधन ने द्रौपदी को भी जीत लिया।
इस खेल में द्रौपदी को जीतने के बाद दुर्योधन ने भाई दुशासन को आदेश दिया कि द्रौपदी को सभा में लेकर आओ। द्रौपदी ने आने से मन कर दिया। इसके पश्चात दुशासन ने द्रौपदी के बाल पकड़े और सभा में घसीट कर ले आया।
दुर्योधन ने दुशासन को द्रौपदी के वस्त्र हरण करने का आदेश दिया। द्रौपदी शूरवीरो से भरी सभा में सभी को मदद के लिए पुकारा लेकिन किसी ने सहायता नहीं की। अंत भगवान कृष्ण को उन्होंने पुकारा। द्रौपदी की विलाप सुनकर श्रीकृष्ण प्रकट हुए। श्री कृष्ण ने द्रौपदी के वस्त्र को बढ़ाना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे दुशासन द्रौपदी के वस्त्र निकाल रहा था। वैसे-वैसे द्रौपदी का वस्त्र बढ़ता जा रहा था। अंत में दुशासन थक के हार गया पर द्रौपदी का चीर हरण नहीं कर पाया।
इस काण्ड में पांडव सहित भीष्म पितामह, राजगुरू द्रोणाचार्य व धृतराष्ट सभी अपराधी है देख रहे थे, लेकिन किसी ने भी दुर्योधन के इस कृत्य को रोकने का प्रयास नही किया।
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