Shrimad Devi Bhagwat - Mahatmya (Complete) | श्रीमद्देवीभागवत महापुराण - माहात्म्य (सम्पूर्ण)
Автор: Shalaka Kashikar
Загружено: 2022-03-21
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Описание:
सम्पूर्ण श्रीमद्देवीभागवत महापुराण
Complete Shrimad Devi Bhagwat Mahapuran: • श्रीमद्देवीभागवत महापुराण | Shrimad Devi B...
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00:08 १- ऋषिगण तथा सूतजीका संवाद, देवी भागवतकी महिमा
10:02 २-देवीभागवतके माहात्म्य-प्रसङ्गमें जाम्बवान्के यहाँसे श्रीकृष्णके मणि प्राप्त करने तथा जाम्बवतीसे विवाह करके द्वारका लौटनेकी कथा
26:34 ३- देवीभागवतके माहात्म्य-प्रसङ्गमें राजा सुद्युम्नके स्त्री बनने और श्रीमद्देवीभागवतश्रवणके फलस्वरूप सदाके लिये पुरुष बनकर राज्य-लाभ और परमपद प्राप्त करनेकी कथा
39:18 ४- देवीभागवतके माहात्म्य-प्रसङ्गमें मुनिके शापसे रेवती नक्षत्रके पतन, पर्वतसे रेवती नामकी कन्याके प्रादुर्भाव, ऋषि प्रमुचके द्वारा उसके पालन तथा राजा दुर्दमके साथ उसके विवाहकी एवं रेवती नक्षत्रके पुनः स्थापनकी कथा
58:12 ५- श्रीमद्देवीभागवतपुराणकी श्रवण-विधि, श्रवणके महान् फल तथा माहात्म्यका वर्णन
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अठारह पुराणोंकी परिगणनामें जिस प्रकार श्रीमद्भागवत महापुराण शीर्ष स्थानपर है उसी प्रकार देवीभागवतकी भी महापुराणके रूपमें उतनी ही महत्ता एवं मान्यता प्राप्त है। प्राचीनकालसे ही शाक्त-भक्त इसे 'शाक्त-भागवत' या देवीभागवत और भागवत-महापुराणको वैष्णव-भक्त 'वैष्णव-भागवत' अथवा श्रीमद्भागवत कहते चले आ रहे हैं। तत्त्व-चिन्तकोंकी दृष्टिमें वस्तुतः दोनों भागवत मिलकर एक ही महापुराणकी पूर्ति करते हैं। जैसे वामाङ्ग और दक्षिणाङ्गके मिलनेसे एक ही महाकायकी पूर्ति होती है, वैसे ही दोनों भागवत एक ही परमतत्त्वके वाम तथा दक्षिण अङ्गके पूरक हैं। दोनों ही एक ही 'परात्पर-तत्त्व' का बोध करानेवाले भिन्न-भिन्न नाम-रूप, गुण-ऐश्वर्य, लीला-कथा और महिमा आदिका प्रतिपादन मुख्यरूपसे करते हैं। दोनों ही महापुराणोंका एकमात्र लक्ष्य है-परमात्म-तत्त्वसे जीवका एकात्मक सम्बन्ध जोड़ना अर्थात् मनुष्य-जीवनके अभीष्ट, अन्तिम लक्ष्य-मोक्ष-प्राप्ति-हेतु प्रेरित और तत्पर करना।
भारतीय आर्य-धर्म-दर्शनकी यह विशेषता है कि इसमें सच्चिदानन्द परात्पर ब्रह्मकी मातृ-रूपमें आराधना की गयी है। यह आराधना कल्पित आराधना नहीं है। वस्तुतः यहाँ अनन्त अद्भुत मातृ-रूपमें शुद्ध सच्चिदानन्दमय परात्पर-तत्त्व ही स्वयं प्रकट है। परब्रह्मकी मातृरूपमें उपासना स्वयंमें बड़े महत्त्वकी है। संतानके लिये माता ही सबसे अधिक निकट और सहज स्नेहसे द्रवित होती है। पुत्र कुपुत्र हो जाता है, पर माता कभी कुमाता नहीं होती। वह तो सदा वात्सल्य-सुधा-धारासे निज संततिके जीवनको (सर्वविध उत्कर्ष और साधन-साफल्यमण्डित करने हेतु) सदा अभिषिक्त और सम्पुष्ट ही करती रहती है। समस्त आर्तियोंका नाश, समस्त विघ्नोंकी निवृत्ति, सम्पूर्ण कामनाओंकी पूर्ति, सिद्धि, सफलताकी प्राप्ति, परम वैराग्य और तत्त्व-ज्ञानका उदय, भक्तिप्रेमकी सुधाधारामें अवगाहन-सभी दुर्लभ-से-दुर्लभ पदार्थों तथा तत्त्वोंकी उपलब्धि माताकी आराधनाउपासनासे सहज ही हो जाती है। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।
देवीभागवतके श्रवण तथा पारायणकी बड़ी महिमा है। इस कल्याणकारी परम पावन ग्रन्थके पढ़ने-सुनने तथा पारायण करनेसे लोक-परलोकमें सब प्रकारके उत्कर्षकी प्राप्ति और भवरोगसे मुक्ति मिलती है-ऐसा कहा गया है।
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