सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का साहित्यिक परिचय
Автор: Pathshala Tak Assam
Загружено: 2025-10-25
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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना एक हिंदी कवि, नाटककार और पत्रकार थे, जो प्रयोगवाद और नई कविता आंदोलन के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी रचनाओं में आम आदमी के जीवन, सामाजिक विसंगतियों और मानवीय संवेदनाओं का चित्रण मिलता है। उन्होंने 'दिनमान' और 'पराग' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया और अपनी रचनाओं, जैसे 'खूँटियों पर टंगे लोग' के लिए 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता।
साहित्यिक योगदान
कविता: वे प्रयोगवाद के सूत्रधार 'तार सप्तक' के कवियों में से एक थे। उनकी कविताएँ सरल, प्रभावशाली और व्यंग्यात्मक भाषा में आम आदमी की भावनाओं और समाज की विसंगतियों को व्यक्त करती हैं।
पत्रकारिता: उन्होंने 'दिनमान' पत्रिका के उपसंपादक और फिर संपादक के रूप में कार्य किया। 'चरचे और चरखे' नामक स्तंभ के माध्यम से उन्होंने वर्षों तक प्रभावशाली लेखन किया। उन्होंने बच्चों की पत्रिका 'पराग' का भी संपादन किया।
नाटक: उन्होंने कई नाटक लिखे, जिनमें 'बकरी' एक प्रसिद्ध नाटक है।
बाल साहित्य: बाल साहित्य के प्रति उनका गहरा योगदान है और उन्होंने माना था कि जिस देश के पास समृद्ध बाल साहित्य नहीं है, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं है।
उपन्यास और कहानी: कविता के अलावा उन्होंने उपन्यास और कहानी भी लिखे।
प्रमुख रचनाएँ
कविता संग्रह: 'काठ की घंटियाँ', 'बाँस का पुल', 'एक सूनी नाव', 'कुआनो नदी', 'जंगल का दर्द', 'खूँटियों पर टंगे लोग'।
नाटक: 'बकरी', 'कल फिर भात आएगा', 'हवालात', 'अब ग़रीबी हटाओ'।
उपन्यास: 'उड़े हुए रंग', 'सोया हुआ जल', 'पागल कुत्तों का मसीहा'।
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