एक विद्यार्थी के लिये शरणागति क्या हे?
Автор: Sanatani Sacha
Загружено: 2025-10-26
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🌼🌺 एक विद्यार्थी के लिए "शरणागति" का अर्थ बहुत विशेष और सुन्दर है। यह केवल भगवान की शरण में जाने तक सीमित नहीं है, बल्कि ज्ञान प्राप्ति के लिए एक पूर्ण समर्पण की भावना है।
एक विद्यार्थी के रूप में शरणागति का अर्थ है - *विद्या (ज्ञान) और गुरु की शरण में पूर्णत: समर्पित हो जाना।*
आइए इसे हिन्दू शास्त्रों के संदर्भ में विस्तार से समझते हैं:
१. गुरु की शरणागति (गुरु-शिष्य परंपरा)
विद्यार्थी जीवन की शुरुआत ही 'गुरु-शरणागति' से होती है। इसमें विद्यार्थी गुरु को अपना सब कुछ मानकर उनके आश्रय में आता है।
*मुंडक उपनिषद* (१.२.१२) में कहा गया है:
"तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्।"
अर्थात: "उस ब्रह्म-तत्व को जानने के इच्छुक विद्यार्थी को समिधा (लकड़ी) हाथ में लेकर, शास्त्रों के ज्ञाता और ब्रह्म में स्थित ऐसे गुरु के पास ही जाना चाहिए।"
यहाँ 'समिट्पाणि' (समिधा हाथ में लेकर) होना पूर्ण समर्पण का प्रतीक है।
*शिक्षाशास्त्र* के अनुसार, विद्यार्थी को गुरु के आश्रम में रहकर, उनकी सेवा करके और उनके निर्देशों का पालन करके ही ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
२. विद्या की शरणागति
विद्यार्थी का अर्थ ही है - विद्या की इच्छा रखने वाला। इसलिए उसे विद्या के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होना चाहिए।
*कठोपनिषद* में नचिकेता एक आदर्श विद्यार्थी का उदाहरण है, जो यमराज से भी न डरकर ज्ञान प्राप्ति के लिए दृढ़ रहता है।
विद्या को देवी सरस्वती का रूप माना गया है। इसलिए विद्या की शरणागति एक प्रकार से देवी की शरणागति है।
३. आचरण की शरणागति (ब्रह्मचर्य)
एक विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है, जो केवल बाह्य आचरण नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म से इंद्रियों पर संयम की शरणागति है।
*मनुस्मृति* (२.१९१) में कहा गया है कि विद्यार्थी को काम, क्रोध, लोभ, मोह, अभिमान आदि से दूर रहकर, अपनी इंद्रियों को वश में रखना चाहिए।
४. सेवा और विनम्रता की शरणागति
शरणागति का एक महत्वपूर्ण अंग अहंकार का त्याग और विनम्रता है।
*श्रीमद्भगवद्गीता* (४.३४) में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
"तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।"
अर्थात: "उस ज्ञान को तू समझ, अर्थात् प्रणिपात (विनम्र भाव से नमस्कार), परिप्रश्न (जिज्ञासापूर्वक प्रश्न) और सेवा द्वारा। ज्ञानी तत्त्वदर्शी महात्माआज तुझे उस ज्ञान का उपदेश करेंगे।"
यहाँ 'प्रणिपात', 'परिप्रश्न' और 'सेवा' - ये तीनों विद्यार्थी के लिए शरणागति के ही रूप हैं।
निष्कर्ष:
एक विद्यार्थी के लिए शरणागति का अर्थ है:
1. *गुरु का शरणागत:* गुरु के प्रति पूर्ण आज्ञाकारी और समर्पित।
2. *विद्या का शरणागत:* ज्ञान प्राप्ति को ही अपना परम लक्ष्य मानना।
3. *आचरण का शरणागत:* ब्रह्मचर्य और अनुशासन में रहना।
4. *विनम्रता का शरणागत:* अहंकार रहित होकर सेवा और जिज्ञासा का भाव रखना।
इस प्रकार, हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, शरणागति विद्यार्थी को आध्यात्मिक और लौकिक दोनों ही प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है। यह वह कुंजी है जो ज्ञान के द्वार खोलती है।
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