क्यों रखा जाता है करवा चौथ का व्रत? क्या है इसका महत्व? भारत उत्सव | शैलेंद्र भारती | तिलक 🙏
Автор: Tilak
Загружено: 2023-10-30
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भारत में सुहागिन अपने पति की भलाई और उनकी दीर्घ आयु के लिए हर साल करवा चौथ का व्रत रखती हैं। कहा जाता है की जो पत्नियां अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं ईश्वर खुद उनके पतियों की रक्षा करते हैं. कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को महिलायें यह व्रत रखती हैं, यानि कि कार्तिक मास की पूर्णिमा के बाद जब चाँद घटने लगता है तो उसका चौथा दिन.
पर कैसे करवा चौथ का व्रत पूरे भारत के जान-मानस में पति की लंबी आयु के लिए एक व्रत और पवित्र त्योहार बन के सामने आया। वो कौन सी कथा है जिसका पौराणिक वर्णन हमारे धर्म ग्रंथों और पुराने इतिहास में मिलता है? आइये जानें।
द्रौपदी अर्जुन के लिए अति-चिंतित रहा करती थी। अर्जुन जब तपस्या के लिए गए तो यह चिंता और भी बढ़ गई. द्रौपदी कहाँ जाती, वो कृष्ण भगवान के पास आयी और उनसे बोली कि क्या उपाय हो सकता है, वो अपने पति की लंबी आयु के लिए ऐसा क्या कर सकती है कि वो उसके लिये आश्वस्त हो जाये और पति की आयु लंबी हो जाये। तब कृष्ण बोले ‘द्रौपदी मैं तुम्हें वही रास्ता बताता हूँ जो कभी शिव-शंकर ने पार्वती को बताया था.’ ऐसा कह कृष्ण ने करवा चौथ की वो कथा सुनाई जो हज़ारों सालों से आज भी अमर है और करवा चौथ के व्रत के दिन हर घर में सुनी और सुनाई जाती है.
वेद शर्मा नाम के एक ब्राह्मण के 7 बेटे और 1 बेटी थी - वीरवती. योग्य होने पर वीरवती के लिए उचित वर ढूँढ कर उसका विवाह कर दिया गया। वीरवती बहुत ही संस्कार वाली लड़की थी, अपने को अति-भाग्यशाली मान वो अपने पति से बहुत अधिक प्यार करती थी.
वीरवती अपने मायके आयी हुई थी। अपनी सभी भाभियों के साथ सच्चे मन से वो गौरी पूजा और व्रत कर रही थी. इस व्रत में पूरे दिन बिना खाने और बिना पानी के रहना होता था। और शाम होने पर बरगद के पेड़ के नीचे बैठ के सब पूजा किया करते थे। चाँद के आने के बाद ही इस पूजा के पूरा होने का विधान था। व्रत शुरू हुआ, चाँद के आने की प्रतीक्षा होने लगी कि सब पत्नियाँ अपना व्रत तोड़ सकें। पर उस दिन वीरवती से भूख और प्यास सहन नहीं हुई। वीरवती चाँद की प्रतीक्षा में बेसुध हो के नीचे गिर गयी। उसके सातों भाइयों से यह देखा नहीं गया। अपनी बहन के लिए अपने प्यार के चलते एक भाई बरगद पर चढ़ गया और एक दिया जला दिया, दुसरे भाई ने बहन को सुध में लाते हुए दिखाया। कि देखो वो आ गया चाँद.. बस जल्दी-जल्दी में चाँद की पूजा करके भाइयों ने पूजा विधि पूरी कर दी।
फिर, व्रत तोड़ने के लिए वीरवती ने जैसे ही पहला टुकड़ा मुँह में डाला तो उसे छींक आ गई। दूसरा टुकड़ा डाला तो उसमें बाल निकल आया, और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने का प्रयास किया तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिला।
भाइयों ने तो अपने प्यार में ऐसा किया था, लेकिन पूजा या ईश्वर की स्तुति में किया गया व्रत ठिठोली नहीं। इसके परिणाम होते हैं, अच्छे तो होते ही हैं और विधि को ठीक से ना करने पर दुष्परिणाम भी सामने आते हैं। जैसे कि आया!
वीरवती सोचने लगती है कि यह उससे क्या अनर्थ हो गया जिससे उसके पति के प्राण चले गये।
उसकी भाभी इंद्राणी उसे बताती है की बिना चाँद के निकले ही उसने अपना व्रत तोड़ दिया. लेकिन इन्द्राणी साथ में यह भी कहती है की अगर वीरवती चंद्र-देव की फिर से पूजा करे तो उसका पति फिर से जीवित हो सकता है. वीरवती का सच्चा प्यार दृढ़ संकल्प के रूप में सामने आया।
वो चंद्र-देव की पूजा शुरू करते हुए यह निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उसे पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव को छोड़ती नहीं, उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर से करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह कर चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो वीरवती उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सके; इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे छोड़ना मत। ऐसा कह के वह चली जाती है।
अंत में छोटी भाभी आती है। वीरवती उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन छोटी भाभी टालमटोली करने लगती है। वीरवती उसे कस के पकड़ लेती है और अपने पति को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए बहुत कुछ करती है पर वीरवती नहीं छोड़ती।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत मृत पति के मुँह में डाल देती है। पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है।
यह वो अमर कथा है जिसमें मृत में प्राण डालने की क्षमता है, जिसमें विवाहिता के पति के शुभ और मंगल की क्षमता है।
श्रेय: शैलेंद्र भारती
Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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