योग दिवस पर कल्पित निबंध – “विनोद मोहबे” शैली में
Автор: Kavi Vinod Mohabe kumar कवि विनोद मोहबे
Загружено: 2025-06-20
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🌿 योग दिवस पर कल्पित निबंध – “विनोद मोहबे” शैली में
शिरोभाग (भाषण का आरंभ)
“आज, 21 जून की प्रथम किरन में, हम खड़े हैं उस पावन धारा के तट पर जहाँ तन‑मन एकत्व की ओर अग्रसर हो…”
प्रस्तावना (परिचय):
योग—यह केवल आसन या सांस का खेल नहीं,
यह है आत्मा का संगीत, ह्रदय का मेल, और चेतना की दीपशिखा।
‘योग’ शब्द का मूल है ‘युज’—‘जोड़ना’। तन को मन से, मन को आत्मा से, आत्मा को ब्रह्म से।
इतिहास और महत्व:
21 जून, विश्व‑युग का सबसे लम्बा दिन,
जब प्रकाश और अँधेरा संग‑संग चलते हैं,
तब संयुक्त राष्ट्र ने देखा योग में वह आन्तरिक आलोक,
जो हमें देता है जीवन को नयी गति, नयी दिशा।
योग के लाभ:
– शरीर में लचक, गति में सहजता, मांसपेशियों में शक्ति,
प्राणायाम से मिलता स्फूर्ति‑पूर्ण जीवन, तनाव से मुक्ति।
– मन में शांति, विचारों में स्पष्टता, एकाग्रता की उपज,
जब ध्यान में डूबे हम—विश्वास, उत्साह और आत्मशक्ति जागृत होती।
विश्व‑परिप्रेक्ष्य:
आज योग की लय फैली है विश्व भर में,
अमरीका‑जापान‑यूरोप में भी गूँजती है इसकी अनुगूँज;
क्योंकि योग जोड़ता है—तन को, मन को, आत्मा को, समाज को।
थीम और संदेश:
“हर घर योग, हर दिन योग” – यह नहीं केवल एक नारा,
बल्कि एक सामाजिक संकल्प है—स्वास्थ्य, शांति, सामंजस्य का उपहार।
निष्कर्ष:
आइए, आज से हर दिन बन जाए हमारा ‘योग‑दिवस’,
जब आसन, प्राणायाम, ध्यान हों हमारी आदत,
तब हम न सिर्फ पाते हैं स्वस्थ‑तम शरीर,
बल्कि आत्मा का शुद्ध होना और मन की अराधना भी।
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