RAJA BHARTHARI राजा भरथरी SUPER HIT MOVIE HINDI /RAJASTHANI
Автор: MODERN VIDEO
Загружено: 2021-06-24
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RAJA BHARTHARI SUPER HIT
जिस प्रकार हर लोक गाथा की शुरूआत देवी–देवता से होती है उसी प्रकार भरतहरी की कथा भी देवी दुर्गा की स्तुति से शुरू होती है। कथा को गद्य और पद्य दोनों में कड़ी दर कड़ी गाया जाता है। बीच–बीच में नैतिकता का संदेश देते दोहे बोले जाते हैं। कथा में मुख्य गायक कलाकार (मेडिया) कथा को आगे बढ़ाता है, बाकी सहयोगी गायक हुँकारा लगाते हैं और गीत की पंक्तियों को दोहराते हैं। साथी कलाकार; ढोलक, पूँगी और मंजीरे के संगीत पर गाते हैं। गायिकी को रुचिकर बनाने के लिए गति, ताल और राग में कई फेरबदल किये जाते हैं।
भरतहरी कथा का आयोजन मुख्यतः किसी भी देवता के थान या घर पर भी किया जा सकता है। इसे रात्रि जागरण में ही गाया जाता है। सामान्यतया किसी मनोकामना की पूर्ति या घरेलू संस्कारों के आयोजन के समय इसे गवाया जाता है। भरतहरी कथा का ज्ञान आम जन को होता है लेकिन इसे गाने वाले सिर्फ जोगी जाति के लोग ही होते हैं, जिन्हें निमंत्रण देकर निश्चित शुभ तिथि या विशेष अवसर पर बुलाया जाता है। बदले में भेंट स्वरूप निश्चित धन राशि व आने–जाने का किराया–भाड़ा दिया जाता है। वर्तमान में भरतहरी कथा गाने वाले जोगी राजस्थान के उतर, पूर्व व पूर्व–पश्चिमी जिलों के गाँवों में मिल जाते हैं। युवा पीढ़ी में इसके प्रति रूचि कम होती जा रही है। फिल्मी धुनों का प्रभाव गायिकी पर दिखाई देने लगा है और आधुनिक साउंड सिस्टम पर निर्भरता बढ़ती जा रही है।भरतहरी की इस संपूर्ण कथा की रिकार्डिंग के लिए जब कई जोगियों को संपर्क किया गया तो उनमें से कईयों ने बिना साउंड सिस्टम के गाने में असर्मथता ज़ाहिर की, सिर्फ बंदा गाँव के अंतर जोगी ने ही इस कथा को कड़ी दर कड़ी बिना किसी साउंड सिस्टम के गाने के दिखाई देने लगा है और आधुनिक साउंड सिस्टम पर निर्भरता बढ़ती जा रही है।
भरतहरी की इस संपूर्ण कथा की रिकार्डिंग के लिए जब कई जोगियों को संपर्क किया गया तो उनमें से कईयों ने बिना साउंड सिस्टम के गाने में असर्मथता ज़ाहिर की, सिर्फ बंदा गाँव के अंतर जोगी ने ही इस कथा को कड़ी दर कड़ी बिना किसी साउंड सिस्टम के गाने के लिए हामी भरी। अंतर जोगी की प्रतिबद्धता की वजह से ही यह काम संभव हो सका जिसके लिए वह प्रशंसा का पात्र है। अंतर को भरतहरी के अलावा शिव–पार्वती का ब्यावला, राजा गोपीचंद की कथा, रूप बसंत की कथा, दूल्हा दाहड़ी की कथा, नरसी जी की कथा (नैनी बाई को मायरो) कंठस्थ है, जिन्हें वह रात्रि जागरणों में आस–पास के गाँवों में गाता है। इन सभी कथाओं में प्रेम, आध्यात्म, वैराग्य, वीरता और कर्तव्यनिष्ठा के तत्व दिखाई देते हैं जो कि मनुष्य को प्रेरित करते हैं और मानव कल्याण के लिए सद्मार्ग पर चलने का संदेश देते हैं। उदाहरणस्वरुप भरतहरी कथा में एक ओर राजा प्रजा के प्रति अपने कर्तव्य के निर्वहन के लिए अपनी लड़की का विवाह कुम्हार की गधी के रेंगटे (बच्चे) से करने को राजी होता है वहीं दूसरी ओर दयालुता व उदारता का प्रतीक राजा भरतहरी बाबा गुरू गोरखनाथ का चेला बनने के लिए काले हिरण का शिकार कर उसकी खाल उनके लिए लाता है और अंत में वह अपना सारा राजपाट त्याग कर उनका शिष्य बन जोगी हो जाता है। कथा में जहाँ अमर फल का किस्सा प्रेम रस से भरा हुआ है तो दूसरी तरफ भरतहरी द्वारा हिरण के शिकार व वैराग्य धारण का किस्सा करूणा रस से सभी को रुला देने वाला है। भरतहरी कथा तीन खण्डों में विभाजित की जा सकती है। लेकिन वह इस प्रकार गायी जाती है कि यह एक कथा का ही आभास देती है....
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