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किन शर्तों पर दारू, लड़की, भोगी जा सकती है ? | Harshvardhan Jain | 7690030010

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Harshvardhan Jain

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किन शर्तों पर दारू

लड़की

भोगी जा सकती है ?

takla motivational video

Автор: Harshvarrdhan Jain

Загружено: 2024-10-15

Просмотров: 213066

Описание: #किन_शर्तों_पर_दारू_लड़की_भोगी_जा_सकती_है #harshavardhanjain
When we are focused on our goal, we do not notice the negative obstacles around us; but when our attention is diverted from the goal, we see only obstacles because our concentration is broken.

चरित्र या व्यक्तित्व ब्रह्मांड की आदर्श अदृश्य शक्तियां हैं और सिद्धियां हैं। इनके साथ समझौता नहीं किया जा सकता है। आपका चरित्र आपकी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं है, यह प्राकृतिक संपत्ति है, सार्वजनिक संपत्ति है और यह आध्यात्मिक शक्ति है। अधिकतर लोग अपने चरित्र या व्यक्तित्व को व्यक्तिगत मानकर ही व्यवहार करते हैं, लेकिन वे अपने चरित्र की महानता की शक्ति को ही नहीं पहचानते। यदि चरित्र महान होता है, तो चेतना आध्यात्मिक ब्रह्मांड से जुड़ जाती है, जिसके लिए आपका जन्म हुआ है और आप उसी से समझौता कर रहे हैं। इसलिए अपने मूलभूत सिद्धांतों से समझौता करने के बजाय, अपने मूलभूत सिद्धांतों की साधना करनी चाहिए। यही साधना आपके सिद्धांतों को अनुकरणीय बनाती है, जिसका अनुयायी संपूर्ण ब्रह्मांड होने को तत्पर है। सिर्फ आपकी अनुमति की प्रतीक्षा है। यदि एक बार आपने निर्णय कर लिया कि समझौता करना असंभव है, तो समझिए पत्थर की लकीर बन गई। अब उसमें बदलाव स्वयं सृष्टि के रचयिता भी नहीं कर सकते क्योंकि आपने स्वयं रचयिता के कार्य को ही अपना कार्य बना लिया है। इसलिए आप ही सूक्ष्म सृष्टि के रचयिता हो गए हैं।

आपका जीवन सकारात्मक हो या नकारात्मक, यह चुनाव करने का अधिकार सदैव आपके पास होता है। यदि कोई व्यक्ति आपके सामने नकारात्मक वस्तु या आदतों को थाली में सजा कर पेश करता है, तो उसे स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार सदैव आपके पास ही होता है। इसका दोष आप किसी को नहीं दे सकते क्योंकि चुनाव आपने किया है, निर्णय आपने किया है और स्वीकार आपने किया है। जो कुछ भी दुनिया में हो रहा है, उसमें सहमति या असहमति का अधिकार सदैव आपके पास होता है। यदि किसी ने आपके सामने कोई प्रस्ताव रखा है, तो उसे अनुमति देना या न देना आपके हाथ में है। हमारी संगति हमारी उन्नति या अवनति का कारण बनती है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष या अहंकार इत्यादि, यह सब हमारी संगति का ही परिणाम होते हैं। यदि हम अपनी संगति बदल दें; अच्छे लोगों की संगति करें, अच्छे विचारों की संगति करें, अच्छी आदतों की संगति करें, अच्छे सिद्धांतों की संगति करें और अच्छे संस्कारों की संगति करें, तो मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि आपका निर्णय कभी गलत हो ही नहीं सकता क्योंकि आपने अपने चरित्र को हीरे के समान चमकते हुए बहुमूल्य गुणों से युक्त आभूषणों से जड़ दिया है। अब आपका चरित्र सूर्य के समान प्रकाशमय हो गया है।

हम जैसे बीज बोते हैं, वैसी ही फसल तैयार होती है। यदि हम आम खाना चाहते हैं और पेड़ सेब का लगाते हैं, तो सेब ही होंगे, आम नहीं क्योंकि आपने सोच समझकर बीज बोए हैं। जिस प्रकार बीज बोने पर पौधे होते हैं, वही पेड़ बनते हैं। उसी प्रकार हम जैसे विचार बोते हैं, वैसा ही व्यक्तित्व बनता है और वैसा ही भविष्य आकार लेता है। यदि हमारा संकल्प दृढ़ प्रतिज्ञ है, तो बड़े से बड़ा लालच हमारे लक्ष्य से हमें भटका नहीं सकता है। जब हम अपने लक्ष्य पर एकाग्रचित्त होते हैं, तब हमें आस पास की नकारात्मक बाधाएं नजर नहीं आती हैं; लेकिन जब हमारा ध्यान लक्ष्य से हट जाता है, तब बाधाएं ही बाधाएं दिखाई देती हैं क्योंकि एकाग्रता भंग हो जाती है। इसलिए अपने जीवन में लक्ष्य के प्रति एकाग्रता को एकाग्र करने का प्रयास करें, आपका लक्ष्य स्वयं मार्गदर्शक बन जाएगा। इसलिए स्वयं को आत्मनिर्भर बनाओ, स्वयं को अपना भाग्य विधाता बनाओ, ताकि सही समय पर सही निर्णय किया जा सके। जो लोग अपने स्वयं के भाग्य विधाता होते हैं, वे अपनी कल्पनाओं के अनुसार ही भविष्य का निर्माण करते हैं और जो लोग अपने भाग्य की चाबी दूसरों के हाथों में थमा देते हैं, वे पूरा जीवन गुलाम बनकर ही जीते हैं और गुलाम अपने भविष्य का निर्माण करने के लिए मानसिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं।

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