काल महाकाल।शिवरात्रि भजन।महाशिवरात्रि पर्व2025।शिव भजन।
Автор: Shashi Yadav" मंजरी "
Загружено: 2025-02-25
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Singer&lyrics-Shashi yadav,manzri
Recording-Cmp Chitrakoot
Title-Kaal mahakaal
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Singer&lyrics-Shashi yadav, manzri
Har har mahadev
महाशिवरात्रि पर्व 2025 : फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। धर्मशास्त्र के अनुसार जिस दिन अर्धरात्रि में चतुदर्शी हो, उसी दिन शिवरात्रि का व्रत करना चाहिए। हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि पर्व का बड़ा महत्व है। इस दिन विधिवत आदिदेव महादेव की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है व कष्टों का निवारण होता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान शिव और शक्ति का मिलन हुआ था। वहीं ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि को भोलेनाथ दिव्य ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। शिवपुराण में उल्लेखित एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और भोलेनाथ ने वैराग्य जीवन त्याग कर गृहस्थ जीवन अपनाया था। शिवरात्रि महात्म्य में लिखा है कि शिवरात्रि से बढ़कर कोई दूसरा व्रत नहीं है। जो व्यक्ति शिवरात्रि को निर्जला व्रत रहकर जागरण और रात्रि के चारों प्रहरों में चार बार पूजा करता है, वह शिव की कृपा को प्राप्त करता है।
2025 में महाशिवरात्रि की डेट- बुधवार, फरवरी 26, 2025।
निशिता काल पूजा समय - 12:09 ए एम से 12:59 ए एम, फरवरी 27
अवधि - 50 मिनट
शिवरात्रि व्रत पारण समय- 27 फरवरी को 06:48 ए एम से 08:54 ए एम तक
पूजा का शुभ मुहूर्त-
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:19 पी एम से 09:26 पी एम
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:26 पी एम से 12:34 ए एम, फरवरी 27
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:34 ए एम से 03:41 ए एम, फरवरी 27
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:41 ए एम से 06:48 ए एम, फरवरी 27
महाशिवरात्रि पूजा-विधि:
इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
शिवलिंग का गंगा जल, दूध, आदि से अभिषेक करें।
भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की पूजा अर्चना भी करें।
भोलेनाथ का अधिक से अधिक ध्यान करें।
ऊॅं नम: शिवाय मंत्र का जप करें।
भगवान भोलेनाथ को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
भगवान की आरती करना न भूलें।
महाशिवरात्रि पूजा सामग्री की लिस्ट- पुष्प, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि।
शिव, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं. उन्हें महादेव, नीलकंठ, रुद्र, महादेव,शिवलिंग, शिवशंकर।
शिव को रूद्र (उग्र), भोलेनाथ, सुंदरेश, अघोर (भंयकर), गौरम (उग्र) और करुणावतार भी कहा जाता है.
शिव हिंदु धर्म के सबसे प्राचीन और लोकप्रिय देवता हैं, उन्हे जगत का संहारक देवता भी माना जाता है। हिंदू धर्म और विशेष रूप से शैव, शाक्त संप्रदायो में उन्हे परब्रह्म (सर्वोच्च ईश्वर) माना गया है।वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव( महादेव ),भोलेनाथ, शंकर, आदिदेव , आशुतोष, महेश, कपाली, पार्वतीवल्लभ, कपाली , महाकाल, रामेश्वर, भिलपती, भिलेश्वर,रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में उन्हे भैरव तथा वैदिक साहित्य में उन्हे रुद्र कहा गया है। भगवान शिव की शक्ति और अर्धांगिनी माता पार्वती है, शिव नित्य कैलाश लोक में अपनी प्रियतमा सहचारी मां पार्वती के साथ विहार करते हैं। इनके पुत्र कार्तिकेय , अय्यपा और गणेश हैं, तथा पुत्रियां अशोक सुंदरी , ज्योति और मनसा देवी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है।वेदसार शिव स्तवः
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य क्रत्तिं वसानं वरेण्यम् ।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गांगवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ।।1
महेशं सुरेशं सुरारार्तिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यंगभूषम् ।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवहिनत्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पंचवक्त्रम् ।।2
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेंद्राधिरूढं गणातीतरूपम् ।
भवं भास्वरं भस्मना भूषितांग भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ।।3
शिवाकान्त शम्भो शशांकर्धमौले महेशान शूलिन् जटाजूटधारिन् ।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ।।4
परात्मानमेकं जगद्विजमाधं निरीहं निराकारमोंकारवेधम् ।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ।।5
न भूमिर्न चापो न वहिनर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा ।
न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ।।6
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम् ।
तुरीयं तम: पारमाधन्तहीनं प्रपधे परं पावनं द्वैतहीनम् ।।7
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते ।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ।।8
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