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Автор: FARMING MOOD

Загружено: 2023-03-22

Просмотров: 10953

Описание: Chickpea farming in india

#Timecodes
0:00 Intro
0:39 basic of chana farming
1:28 soil preparation
2:19 Seed Germination ਟੈਸਟ
2:48 seed rate per hectare
3:21 unnat kisme
6:19 time of sowing area wise
7:59 seed treatment
9:21 water management
10:20 insect management
10:46 fertilizer management
14:00 disease management
15:23 multicroping







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Cultivation of Chickpea (Gram)
भारत में चने की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा बिहार में की जाती है। देश के कुल चना क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत भाग तथा कुल उत्पादन का लगभग 92 प्रतिशत इन्ही प्रदेशाें से प्राप्त होता है। भारत में चने की खेती 7.54 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है जिससे 7.62 क्विं./हे. के औसत मान से 5.75 मिलियन टन उपज प्राप्त होती है। भारत में सबसे अधिक चने का क्षेत्रफल एवं उत्पादन वाला राज्य मध्यप्रदेश है तथा छत्तीसगढ़ प्रान्त के मैदानी जिलो में चने की खेती असिंचित अवस्था में की जाती है।

जलवायु :

चना एक शुष्क एवं ठण्डे जलवायु की फसल है जिसे रबी मौसम में उगाया जाता हे। चने की खेती के लिए मध्यम वर्षा (60-90 से.मी. वार्षिक वर्षा) और सर्दी वाले क्षेत्र सर्वाधिक उपयुक्त है। फसल में फूल आने के बाद वर्षा होना हानिकारक होता है, क्योंकि वर्षा के कारण फूल परागकण एक दूसरे से चिपक जाते जिससे बीज नही बनते है। इसकी खेती के लिए 24-300सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है। फसल के दाना बनते समय 30 सेल्सियस से कम या 300 सेल्सियस से अधिक तापक्रम हानिकारक रहता है।

काबूली चना :

छत्तीसगढ़ में इसकी खेती सिंचित दशा में ही की जा सकती है पर प्रति हेक्टेयर पौध संख्या का बराबर न होना प्रान्त में खेती को बढ़ावा नहीं दे रहा है।

एल 550 : यह 140 दिनों में पकने वाली किस्म है। इसकी उपज 10 से 13 क्विं./हे. है इसके 100 दानों का वजन 24 ग्राम है।

सी -104 : यह किस्म 130-135 दिन में पककर तैयार हो जाती है। एवं औसतन 10 से 13 क्विं./हे. उपज देती है। इसके 100 दानों का वजन 25-30 ग्राम होता है।
बीज दर : समय पर बोवाई के लिए 75-80 कि.ग्रा./हे.

देषी चना (मोटा दाना) 80 -100 कि.ग्रा/हे.
काबुली चना (मोटा दाना) 100-120 कि.ग्रा./हे.

चने के उकठा रोग नियंत्रण:

उकठा रोग निरोधक किस्मों का प्रयोग करना चाहिए।
प्रभावित क्षेत्रो में फल चक्र अपनाना लाभकर होता है।
प्रभावित पोधा को उखाडकर नष्ट करना अथवा गढ्ढे में दबा देना चाहिये।
बीज को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम या ट्राइकोडर्मा विरडी 4 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए।
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farming #agriculture  #khetibadi


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