काशी का महत्त्व
Автор: MindIt
Загружено: 2024-07-10
Просмотров: 138
Описание:
काशीखण्ड में देवाधिदेव महादेव माता पार्वती से कहते है कि हे देवि! काशीपुरी अवस्थित भगवान् त्रिलोचन त्रिविष्टप के दर्शन और त्रिविष्टप से दक्षिण और पिलपिला के वहीं पर पादोदक नामक पापविनाशक एक कूप है, उसका जल पी लेने से मुनष्य फिर कभी मर्त्यलोक में नहीं जनमने पाता और त्रिलोचन के पास में और भी बहुत से लिंग हैं। यहाँ पर उनका दर्शन और स्पर्शन करने से मुक्ति को वे दे देते हैं--
पादोदकाख्यस्तत्रैव कूपः पापविनाशकः।
प्राश्य तस्योदकं मो न मर्यो जायते पुनः।। ७५
तस्य लिङ्गस्य पार्श्वे तु सन्ति लिङ्गान्यनेकशः ।
कैवल्यदानि तान्यत्र दर्शनात्स्पर्शनादपि ॥ ७६
वहाँ ही गंगा के तीर पर एक शान्तनव नामक लिंग प्रतिष्ठित है। उसके दर्शन से संसार से तापित मनुष्य भी शान्तिलाभ करता है उसके दक्षिणभाग में भीष्मेश्वर नामक महालिंग है, उसके दर्शन से कलिकाल और काम, कोई भी बाधा नहीं पहुँचा सकता--
तत्र शान्तनवं लिङ्ग गङ्गातीरे प्रतिष्ठितम् ।
तदृष्ट्वा शान्तिमाप्नोति नरः संसारतापितः ॥ ७७
तद्दक्षिणे महालिङ्ग मुने भीष्मेशसंज्ञितम् ।
कलिः कालश्च कामश्च बाधते न तदीक्षणात् ॥ ७८
धयातव्य हो कि द्वापरकाल में काशीपुरी के पिलपिला तीर्थ पर गंगा पुत्र भीष्म और उनके पिता महाराज शांतनु द्वारा यही गंगा तट पर एक एक शिवलिंग स्थापित किया था जो वर्तमान में भगवान हिरण्यगर्भेश्वर महादेव के नीचे मढ़ी में मां गंगा की मूर्ति के निकट अवस्थित हैं।
Повторяем попытку...
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео
-
Информация по загрузке: