Prabhu ki kripiya

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

( भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बताते है कि जब भी और जहाँ भी धर्म की ग्लानि, पतन, हानि होती है और अधर्म की प्रधानता, वृद्धि होने लगती है, तब तब मैं धर्म की वृद्धि के लिए अवतार लेता हूँ। भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए हर युग में प्रकट हो)

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥

( भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बताते है कि कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो और न ही कर्म न करने में कभी अशक्त हो)
 

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prabhu ki kripiya
(Bhakti Mai Shakti)